कोई भी इस जगत में शत प्रतिशत अनवद्य नहीं, मृत्पिंडों से
निर्मित है देह का
संग्रहालय,
कुछ न
कुछ
कमी रह जाती है शिल्प की रचना में,
अंतरतम का सौंदर्य ही रहता है
शाश्वत, सुंदरता उभरती है
तभी जब हृदय बने
उन्मुक्त देवालय,
मृत्पिंडों से
निर्मित है
देह का
संग्रहालय । अश्वत्थ वृक्ष बने जीवन,
सत्पथ में बढ़े भावनाओं की हरित
शाखाएं, ऊपर में हो पक्षियों
का रैन बसेरा, परछाई
में बसे क्लांत
पथिकों
का
डेरा, सब कुछ अपने अंदर समाहित
क्या श्मशान क्या शिवालय,
मृत्पिंडों से निर्मित है
देह का
संग्रहालय ।
- - शांतनु सान्याल