06 अक्तूबर, 2022

असमाप्त अंतर्यात्रा - -

 एक सुनसान द्वीप में ज़िन्दगी देखती
है दूर तक एक निःशब्द, ख़ामोशी
का शहर, किनारे की ज़मीं
हज़ार बार टूट कर
भी, विक्षिप्त
लहरों से
नहीं
करती कोई समझौता, चट्टान कभी नहीं
सरकते हैं अपनी जगह से तिल भर,
ज़िन्दगी देखती है दूर तक एक
निःशब्द, ख़ामोशी का
शहर। वक़्त के
थपेड़े सिर्फ़
कुछ
रेत बना सकते हैं लेकिन वजूद को मिटा
सकते नहीं, तुम्हारे निगाह में है अगर
अंतहीन गहराई, कोई भी तिलस्मी
ख़्वाब बरगला सकते नहीं,
चट्टान को दर्द नहीं
होता, वो सब
कुछ
महसूस करता है चिर मौन रह कर,
वो स्थिर हो कर भी अपने अंदर
चलता रहता है उम्र भर,
ज़िन्दगी देखती है
दूर तक एक
निःशब्द,
ख़ामोशी का शहर - -
* *
- - शांतनु सान्याल

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-10-2022) को   "गयी बुराई हार"   (चर्चा अंक-4575)    पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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