12 अक्टूबर, 2022

कारागृह - -

अक्सर नहीं मिलते दो रास्ते, एक ही उद्गम
से निकल कर, कुछ तलहटी से हो कर
पहुँच जाते हैं अपनी मंज़िल की
ओर, कुछ रास्ते उम्र भर
करते हैं आत्म खोज,
वो बनाते हैं एक
आकाशगंगा
अपने ही
अंदर,
अक्सर नहीं मिलते दो रास्ते, एक ही उद्गम
से निकल कर । कुछ रिश्ते रहते हैं पूरी
तरह से मौन, अपरिभाषित, फिर
भी निभाते हैं बख़ूबी से अपना
किरदार, कुछ लोग बहुधा
मिल कर भी, दिल
से नहीं रखते
कोई भी
सरोकार, फिर भी हम हाथ मिलाते हैं किसी
औपचारिकता के वश, गुज़रते हैं बड़ी
ही ख़ूबसूरती से ज़रा संभल कर,
अक्सर नहीं मिलते दो रास्ते,
एक ही उद्गम से निकल
कर । कुछ रूह उम्र
भर चाहती है
कारागृह,
किसी
के मोहपाश में ख़ुद को बांधे रखना, नहीं
चाहती उससे आज़ाद होना, किसी
एक बिंदु पर वो खो जाते हैं
किसी अरण्य स्रोत की
तरह उत्स विहीन,
उनकी क़िस्मत
में शायद नहीं
होता पुनः
आबाद
होना,
अंतिम पहर उन्हें मिलती है असीम शांति,
ओस की नन्ही बूंदों के साथ पृथ्वी
पर आ, जब वो जाते हैं दूर
तक बिखर, अक्सर
नहीं मिलते
दो रास्ते,
एक ही
उद्गम से निकल कर - -
* *
- - शांतनु सान्याल

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