26 अक्टूबर, 2022

अन्तर प्रवाह - -

मैं अपनी जगह हूँ स्थिर, किसी काष्ठ पुल
की तरह, एक अनाम अरण्य नदी
बहती है मेरे अस्तित्व के
बहुत अंदर, सुदूर
कहीं से आ
रही है
घंटियों की मधुर ध्वनि, जाग रहा है कोई
खंडहरों के मध्य, विस्मृत सा पुरातन
मंदिर, प्रणय स्रोत बहे जा रहे हैं
अजस्र धाराओं में, जाने
किधर है उन्मुक्त
नील समंदर,
एक
अनाम अरण्य नदी बहती है मेरे अस्तित्व
के बहुत अंदर। चंचल समय, हथेलियों
से निकल कर तितलियों के हमराह
उड़ चला है, बहुत दूर, ऊँचे
दरख़्त, जंगल, पहाड़,
ख़ूबसूरत वादियां,
फूलों से लदी
घाटियों,
से हो
कर, अंतहीन है उनका ये अनजान सफ़र,
हिय के भीतर सजता है अक्सर,
नए चाहतों का उजड़ा हुआ
शहर, एक अनाम
अरण्य नदी
बहती है
मेरे
अस्तित्व के बहुत अंदर। इस क्षण भंगुर
जीवन में होते हैं अनगिनत नेहों के
पुल, जिसकी नीचे बहती है
सहस्त्र जलधारा, कुछ
सूख जाते हैं
मुहाने
से
पहले, कुछ पहुंचते हैं सागर की असमाप्त
गहराई तक, दरअसल अंतरतम का
सौंदर्य होता है हमारे बहुत ही
नज़दीक, लेकिन हम
खोजते हैं उनको
जो रखते
नहीं
हमारी ख़बर, एक अनाम अरण्य नदी - -
बहती है मेरे अस्तित्व के बहुत
अंदर।  
* *
- - शांतनु सान्याल 

अन्तर प्रवाह - - VIDEO FORM



4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 27 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 27 अक्टूबर 2022 को 'अपनी रक्षा का बहन, माँग रही उपहार' (चर्चा अंक 4593) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    जवाब देंहटाएं

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