27 अक्तूबर, 2022

न जाने कौन था - -

उजाड़, शुष्क आंखों से शून्य में तकता
हुआ, न जाने कौन था वो अज्ञात
आदमी, लहूलुहान मुट्ठियों
में था उसके विफल
विप्लव की
कहानी,
महा -
नगर की भीड़ भरी बस्तियों में रह कर
भी अपने आप में था वो बेहद
एकाकी, कोई विक्षिप्त
था या गहन रूह
का मालिक,
जिस के
दिल
का छाया पथ कभी नहीं धुंधलाया, वो
कोई मूक आर्तनाद था या राख
के अंदर दबा हुआ अंगार,
एक निःशब्द गर्जना
जो परिपूर्णता
से कभी
गरज
नहीं
पाया, अपने ही लोगों में था वो बहुत ही
अनजान, इतिहास के पृष्ठों में रहा
वो अवर्णित, जिस ने कभी
झोंक दी थी अपनी
पूरी जवानी,    
न जाने
कौन
था वो अज्ञात आदमी, लहूलुहान मुट्ठियों
में था उसके विफल विप्लव की
कहानी ।
* *
- - शांतनु सान्याल
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