बूंद भूमिगत जल की तरह, समय बना
देता है हर एक को झूलता हुआ
बिल्लौरी झाड़ फ़ानूस,
उजालों के हरि -
लूट में लोग
अक्सर
रौंद जाते हैं नाज़ुक भावनाएं बासी फूल - -
की तरह, वो ख़्वाब जो गिरते हैं अंध
गुफाओं में बूंद - बूंद भूमिगत
जल की तरह। उस मोड़
पर हम नहीं लौटना
चाहते जहाँ से
ज़िन्दगी
ने किया था सफ़र का आगाज़, लेकिन शून्य
मील का पत्थर उम्र भर करता है हमारा
पीछा, चाह कर भी हम उसे नहीं
कर सकते नज़र अंदाज़,
उसे हम ढोते हैं
अपने अंदर
किसी
अदृश्य दख़ल की तरह, वो ख़्वाब जो गिरते
हैं अंध गुफाओं में बूंद - बूंद भूमिगत
जल की तरह। प्रारब्ध का होता
है अपना ही अलग विधान,
कल, आज और परसों
के मध्य झूलता
रहता है किसी
लोलक
की
तरह इंसान, कोई नहीं परिपूर्ण सुखी यहाँ -
कुछ आग सुलगते हुए, कुछ दबे रहते
राख के बहुत अंदर, बुझना है
सभी को एक दिन क्या
भिक्षुक और भला
क्या सिकंदर,
फिर भी
हर
हाल में ज़िन्दगी लगती है ख़ूबसूरत किसी
अनदेखे मंज़िल की तरह, वो ख़्वाब
जो गिरते हैं अंध गुफाओं में
बूंद - बूंद भूमिगत जल
की तरह।
* *
- - शांतनु सान्याल
बूंद - बूंद ख़्वाब - - video form
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, शांतनु जी
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद व दीपावली की शुभकामनाएं।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 20 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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असंख्य धन्यवाद व दीपावली की शुभकामनाएं।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 20 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत ही सुन्दर रचना आपको दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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