एक जिस्म और बेहिसाब खरोचों की 
निशानी, किसी आदिम सुरंग से 
गुज़री है रात, एक सरसराहट 
के साथ, टूटे हैं खिड़कियों 
के कांच, किसी दूरगामी
रेल की तरह है ये 
ज़िंदगानी, एक 
जिस्म और 
बेहिसाब 
खरोचों 
की 
निशानी। पहाड़ों से फिर उठ रहा है 
धुआं सा, कुछ बुझा है वादियों में 
या कुछ अभी तक है सुलगता 
सा मेरे सीने के दरमियां,
हर चेहरा है कुछ 
मुरझाया सा,
हर एक 
नज़र 
है 
एक शीर्षक विहीन कहानी, एक -
जिस्म, और बेहिसाब खरोचों 
की निशानी। सभी सूखी 
नदियां दोबारा उभर 
आएंगी, सभी 
रिश्ते फिर 
स्मृति 
फ्रेम 
में जड़ जाएंगे, कोई मुड़ कर भी नहीं 
देखेगा, सभी आगामी कल की 
ओर बढ़ जाएंगे, किनारों 
से उतर जाएंगे सभी 
लहर तूफ़ानी, एक 
जिस्म, और 
बेहिसाब 
खरोचों 
की 
निशानी। 
* * 
- - शांतनु सान्याल 
    
04 जून, 2021
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वाह♥️🌻
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसभी सूखी
जवाब देंहटाएंनदियां दोबारा उभर
आएंगी, सभी
रिश्ते फिर
स्मृति
फ्रेम
में जड़ जाएंगे, कोई मुड़ कर भी नहीं
देखेगा, सभी आगामी कल की
ओर बढ़ जाएंगे, किनारों
से उतर जाएंगे सभी
लहर तूफ़ानी, एक
जिस्म, और
बेहिसाब
खरोचों
की
निशानी।
सुन्दर सृजन.....
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंकोई मुड़ कर भी नहीं
जवाब देंहटाएंदेखेगा, सभी आगामी कल की
ओर बढ़ जाएंगे, किनारों
से उतर जाएंगे सभी
लहर तूफ़ानी, एक
जिस्म, और
बेहिसाब
खरोचों
की
निशानी।..ये जीवन ऐसे ही चलता है,बहुत सटीक,भावों भरा सृजन ।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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