जो कुछ भी बिखरा हुआ है मेरे
आसपास, उन्हीं को मैंने
माना है ज़िन्दगी
का इतिहास,
कुछ
धूसर चेहरों में आज भी खेलते हैं
ख़ालिस मुस्कान, समय
छीन लेता है अपना
महसूल ये सच
है फिर भी
चेहरा
ढल जाए तो क्या, बना रहे दिल
का अभिमान, कुछ धूसर
चेहरों में आज भी
खेलते हैं ख़ालिस
मुस्कान।
जाने
कितने आग्नेय पर्वतों से होकर
नंगे पांव गुज़री है रात,
फिर भी चेहरे पर
कोई शिकन
नहीं,
ताबूत विहीन देह का मूल्य था
माटी, वक़्त ने समझा दिया,
तुम्हारे सीने का बोझ
भी उतर गया,
और रूह
को भी
अब कोई थकन नहीं, गंगा की
गोद में डूब गए तथाकथित
धर्म और ईमान, कुछ
धूसर चेहरों में
आज भी
खेलते
हैं
ख़ालिस मुस्कान।
* *
- - शांतनु सान्याल
12 जून, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंहृदय विदारक ,मर्मस्पर्शी रचना !
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअति सुंदर ।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबेहद सुंदर कृति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं