12 जून, 2021

अर्थहीन अवशेष - -

जो कुछ भी बिखरा हुआ है मेरे
आसपास, उन्हीं को मैंने
माना है ज़िन्दगी
का इतिहास,
कुछ
धूसर चेहरों में आज भी खेलते हैं
ख़ालिस मुस्कान, समय
छीन लेता है अपना
महसूल ये सच
है फिर भी
चेहरा
ढल जाए तो क्या, बना रहे दिल
का अभिमान, कुछ धूसर
चेहरों में आज भी
खेलते हैं ख़ालिस
मुस्कान।
जाने
कितने आग्नेय पर्वतों से होकर
नंगे पांव गुज़री है रात,
फिर भी चेहरे पर
कोई शिकन
नहीं,
ताबूत विहीन देह का मूल्य था
माटी, वक़्त ने समझा दिया,
तुम्हारे सीने का बोझ
भी उतर गया,
और रूह
को भी
अब कोई थकन नहीं, गंगा की
गोद में डूब गए तथाकथित
धर्म और ईमान, कुछ
धूसर चेहरों में
आज भी
खेलते
हैं
ख़ालिस मुस्कान।

* *
- - शांतनु सान्याल




 

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. हृदय विदारक ,मर्मस्पर्शी रचना !

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