अंधेरे से उजाले तक, प्रतीक्षारत रहा
एक असमाप्त अंतराल, किंतु
लौटा नहीं वो अंतरतम
का अनुनाद, वो
सभी मर्म
जो
तुमने बांधे शब्दारण्य में, दरअसल
थे बहुत ही खोखले, तैरते रहे
उथले किनारे पर, यूँ ही
चिरकाल, अंधेरे से
उजाले तक,
प्रतीक्षारत
रहा
एक असमाप्त अंतराल। हर एक के
सीने में होता है कहीं न कहीं एक
झील लहराता हुआ, बस
कुहासे में कमल
नज़र आता
नहीं,
दूर से वादियों का नज़ारा भुला देता
है सभी शब्दशास्त्र की बारीकियां,
क़रीब आने पर उभर आते
हैं बेवजह ही असंख्य
त्रुटियां, चाहतों
की इस धरा
पर रहता
है हमेशा ही परितृप्ति का अकाल,
अंधेरे से उजाले तक, प्रतीक्षारत
रहा एक असमाप्त
अंतराल।
* *
- - शांतनु सान्याल
13 जून, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
चाहतों
जवाब देंहटाएंकी इस धरा
पर रहता
है हमेशा ही परितृप्ति का अकाल,
अंधेरे से उजाले तक, प्रतीक्षारत
रहा एक असमाप्त
अंतराल।
प्रतीक्षारत ह्रदय की हृदयविदारक रचना !बहुत सूंदर !!
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा की घडी कठिन होती है ....
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसार्थक सामयिक सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंतुमने बांधे शब्दारण्य में, दरअसल
जवाब देंहटाएंथे बहुत ही खोखले, तैरते रहे
उथले किनारे पर, यूँ ही
चिरकाल, अंधेरे से
उजाले तक,
प्रतीक्षारत..मन को छूती सराहनीय अभिव्यक्ति।
हमेशा की तरह।
सादर
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंएक असमाप्त अंतराल। हर एक के
जवाब देंहटाएंसीने में होता है कहीं न कहीं एक
झील लहराता हुआ, बस
कुहासे में कमल
नज़र आता
नहीं,वाह सुंदर यादों के एहसासों का सिलसिला और इंतजार की घड़ियां, अनोखी रचना ।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंवाह! बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं