13 जून, 2021

असमाप्त अंतराल - -

अंधेरे से उजाले तक, प्रतीक्षारत रहा
एक असमाप्त अंतराल, किंतु
लौटा नहीं वो अंतरतम
का अनुनाद, वो
सभी मर्म
जो
तुमने बांधे शब्दारण्य में, दरअसल
थे बहुत ही खोखले, तैरते रहे
उथले किनारे पर, यूँ ही
चिरकाल, अंधेरे से
उजाले तक,
प्रतीक्षारत
रहा
एक असमाप्त अंतराल। हर एक के
सीने में होता है कहीं न कहीं एक
झील लहराता हुआ, बस
कुहासे में कमल
नज़र आता
नहीं,
दूर से वादियों का नज़ारा भुला देता
है सभी शब्दशास्त्र की बारीकियां,
क़रीब आने पर उभर आते
हैं बेवजह ही असंख्य
त्रुटियां, चाहतों
की इस धरा
पर रहता
है हमेशा ही परितृप्ति का अकाल,
अंधेरे से उजाले तक, प्रतीक्षारत
रहा एक असमाप्त
अंतराल।

* *
- - शांतनु सान्याल





15 टिप्‍पणियां:

  1. चाहतों
    की इस धरा
    पर रहता
    है हमेशा ही परितृप्ति का अकाल,
    अंधेरे से उजाले तक, प्रतीक्षारत
    रहा एक असमाप्त
    अंतराल।

    प्रतीक्षारत ह्रदय की हृदयविदारक रचना !बहुत सूंदर !!

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  2. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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  3. तुमने बांधे शब्दारण्य में, दरअसल
    थे बहुत ही खोखले, तैरते रहे
    उथले किनारे पर, यूँ ही
    चिरकाल, अंधेरे से
    उजाले तक,
    प्रतीक्षारत..मन को छूती सराहनीय अभिव्यक्ति।
    हमेशा की तरह।
    सादर

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  4. एक असमाप्त अंतराल। हर एक के
    सीने में होता है कहीं न कहीं एक
    झील लहराता हुआ, बस
    कुहासे में कमल
    नज़र आता
    नहीं,वाह सुंदर यादों के एहसासों का सिलसिला और इंतजार की घड़ियां, अनोखी रचना ।

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