बहोत नाज़ुक थे वो रेशमी पल -
ज़रा सी आहट में टूट गए,
ज़रा और सहेज पाते
अपनी बिखरी
हुई, बूंद -
बूंद ये ज़िन्दगी कि उसके पहले
ही वो रूठ गए, इक कोहरा
सा था ज़रूर दरमियां
अपने, लेकिन
अँधेरा
नहीं, फिर भी न जाने क्यूँ, हम
भीड़ में तनहा छूट गए,
कोशिशों में न थी
कोई कमी,
सीने
से लगा रखा था, उन्हें ताउम्र - -
हमने, तक़दीर का गिला
किस से करें लूटने
वाले फिर भी
लूट गए,
बहोत नाज़ुक थे वो रेशमी पल -
ज़रा सी आहट में टूट गए.
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
painting-by-Madhulika-Srivastava - India
ज़रा सी आहट में टूट गए,
ज़रा और सहेज पाते
अपनी बिखरी
हुई, बूंद -
बूंद ये ज़िन्दगी कि उसके पहले
ही वो रूठ गए, इक कोहरा
सा था ज़रूर दरमियां
अपने, लेकिन
अँधेरा
नहीं, फिर भी न जाने क्यूँ, हम
भीड़ में तनहा छूट गए,
कोशिशों में न थी
कोई कमी,
सीने
से लगा रखा था, उन्हें ताउम्र - -
हमने, तक़दीर का गिला
किस से करें लूटने
वाले फिर भी
लूट गए,
बहोत नाज़ुक थे वो रेशमी पल -
ज़रा सी आहट में टूट गए.
* *
- शांतनु सान्याल
painting-by-Madhulika-Srivastava - India
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें