ले चल फिर मुझे इक बार उन्हीं
ख्वाब उनींदी राहों में कहीं,
है बोझिल जिस्म ओ
जां, कि साँस
भी है
कुछ मद्धम सा, ले चल कहीं - -
दूर, ज़माने के तमाम
वो कँटीली रस्म
ओ रिवाज
के बर
अक्स, किसी उन्मुक्त आसमां -
के तले, जहाँ बिखरती हो
चाँदनी अबाध नदी
की तरह,
भिगोती है जहाँ शबनम की बूंदें,
रात ढले, रूह की तिश्नगी
लम्हा लम्हा, जहाँ
दग्ध जीवन
पाए -
इक नवीन उच्छ्वास, हो मुझे -
फिर दोबारा तेरे बेइंतहा
इश्क़ का अंतहीन
अहसास।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
song bird
ख्वाब उनींदी राहों में कहीं,
है बोझिल जिस्म ओ
जां, कि साँस
भी है
कुछ मद्धम सा, ले चल कहीं - -
दूर, ज़माने के तमाम
वो कँटीली रस्म
ओ रिवाज
के बर
अक्स, किसी उन्मुक्त आसमां -
के तले, जहाँ बिखरती हो
चाँदनी अबाध नदी
की तरह,
भिगोती है जहाँ शबनम की बूंदें,
रात ढले, रूह की तिश्नगी
लम्हा लम्हा, जहाँ
दग्ध जीवन
पाए -
इक नवीन उच्छ्वास, हो मुझे -
फिर दोबारा तेरे बेइंतहा
इश्क़ का अंतहीन
अहसास।
* *
- शांतनु सान्याल
song bird
प्रस्तुति प्रशमसनीय है। मेरे नरे नए पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है, पर आपका इंजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंthanks a lot respected friend
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