जिस्म से लम्बी परछाइयाँ, बढ़ा
जाती हैं अक्सर, शाम ढलते
कुछ ज़ियादा ही, दिल
की परेशानियाँ,
इंतज़ार
कोई जो गहरा जाए मज़ीद, रूह
की तन्हाइयाँ, न ले यूँ
इम्तहां मेरे सब्र
का, कि इक
मुद्दत
से हूँ मैं मुंतज़िर सुलगने के लिए,
रात ढलने से पहले, न कहीं
बुझ जाए जज़्बा ए
इश्क़, कितनी
सदियों
से है बेक़रार ये ज़िन्दगी पिघलने
के लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by barbara palmer
जाती हैं अक्सर, शाम ढलते
कुछ ज़ियादा ही, दिल
की परेशानियाँ,
इंतज़ार
कोई जो गहरा जाए मज़ीद, रूह
की तन्हाइयाँ, न ले यूँ
इम्तहां मेरे सब्र
का, कि इक
मुद्दत
से हूँ मैं मुंतज़िर सुलगने के लिए,
रात ढलने से पहले, न कहीं
बुझ जाए जज़्बा ए
इश्क़, कितनी
सदियों
से है बेक़रार ये ज़िन्दगी पिघलने
के लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
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