इक मुद्दत के बाद, फिर हमने धूल के
परतों को साफ़ किया, आईना
फिर लगे है नई किताब
जैसा, इक ज़माने
से है उनको
शिकायत
कि हम नहीं मुस्कुराते, लो फिर ओढ़
ली हमने जिल्द कोई ख़ुशनुमा,
कौन देखता है, आजकल
अंदरूनी पन्नों की
दास्तां, दर -
असल
ऊपरी ख़ूबसूरती पे रहती है दुनिया की
नज़र, दिल की गहराइयों का अर्थ
यहाँ कुछ भी नहीं, न रख
उम्मीद ज़रूरत से
ज़ियादा,
जिसे हम समझते रहे रहनुमा अपना,
वही आख़िर में रहज़न निकला,
यूँ तो शहर में हमारे थे
दोस्त हज़ार
लेकिन
जिसे हमने चाहा दिल ओ जां से बढ़ -
कर, अफ़सोस कि वही शख्स
हमारा दुश्मन निकला !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
artistic flowers
परतों को साफ़ किया, आईना
फिर लगे है नई किताब
जैसा, इक ज़माने
से है उनको
शिकायत
कि हम नहीं मुस्कुराते, लो फिर ओढ़
ली हमने जिल्द कोई ख़ुशनुमा,
कौन देखता है, आजकल
अंदरूनी पन्नों की
दास्तां, दर -
असल
ऊपरी ख़ूबसूरती पे रहती है दुनिया की
नज़र, दिल की गहराइयों का अर्थ
यहाँ कुछ भी नहीं, न रख
उम्मीद ज़रूरत से
ज़ियादा,
जिसे हम समझते रहे रहनुमा अपना,
वही आख़िर में रहज़न निकला,
यूँ तो शहर में हमारे थे
दोस्त हज़ार
लेकिन
जिसे हमने चाहा दिल ओ जां से बढ़ -
कर, अफ़सोस कि वही शख्स
हमारा दुश्मन निकला !
* *
- शांतनु सान्याल
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