न खेल यूँ आतिश ए जज़्बात से -
मेरे, झुलस न रह जाए कहीं
उभरते बर्ग मुहोब्बत,
अभी तलक
तुमने
देखा कहाँ है चमन का मुक्कमल
संवरना, सूरज की पहली -
किरण में फूलों का
हौले हौले से
खिलना,
अभी अभी तो ढली है ख़ुमार ए -
शब, कुछ और रौशनी बिखरे
वादियों में, अभी तलक
है तुम्हारे दिल में
शबनमी
छुअन बाक़ी, न देख यूँ नींद भरी
आँखों से हक़ीक़ी दुनिया,
कि आसां नहीं है
ख्वाबो से
यकायक उभरना, ज़िन्दगी की -
राहें हैं बहोत मुश्किल
लेकिन हसीन भी
कम नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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मेरे, झुलस न रह जाए कहीं
उभरते बर्ग मुहोब्बत,
अभी तलक
तुमने
देखा कहाँ है चमन का मुक्कमल
संवरना, सूरज की पहली -
किरण में फूलों का
हौले हौले से
खिलना,
अभी अभी तो ढली है ख़ुमार ए -
शब, कुछ और रौशनी बिखरे
वादियों में, अभी तलक
है तुम्हारे दिल में
शबनमी
छुअन बाक़ी, न देख यूँ नींद भरी
आँखों से हक़ीक़ी दुनिया,
कि आसां नहीं है
ख्वाबो से
यकायक उभरना, ज़िन्दगी की -
राहें हैं बहोत मुश्किल
लेकिन हसीन भी
कम नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
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