इतनी मुश्किल भी न थी ज़िन्दगी की
राहें, काश, समझ पातीं उन्हें
अपनी अंतर्मन की
निगाहें, कोई
भी नहीं
यहाँ बेदाग़ चेहरा, हर शख्स कहीं न -
कहीं ओढ़े है, चेहरे पे इक नया
चेहरा, ग़ायब या ज़ाहिर,
हर लब पे है इक
ख़ामोश
इश्तहार, ये बात और है कि हम उसे -
कितना पढ़ पाएं, ख़ुद से बाहर
निकलना नहीं आसां,
ग़र निकल भी
आए, तो
करती है पीछा, रात दिन अपनी ही - -
परछाई, उस हाल में आख़िर
हम जाएं, तो कहाँ
जाएं, दिल की
आवाज़
से निपटना है, बहोत ही मुश्किल, ये -
लौट आती हैं हर बार छू कर
किरदार ए आईना, कि
अक्स अपना
ख़ुद से
छुपाना नहीं मुमकिन, कि घने धुंध में
भी ये बार बार उभर आएं, काश,
समझ पातीं उन्हें अपनी
अंतर्मन की
निगाहें।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by nora kasten
राहें, काश, समझ पातीं उन्हें
अपनी अंतर्मन की
निगाहें, कोई
भी नहीं
यहाँ बेदाग़ चेहरा, हर शख्स कहीं न -
कहीं ओढ़े है, चेहरे पे इक नया
चेहरा, ग़ायब या ज़ाहिर,
हर लब पे है इक
ख़ामोश
इश्तहार, ये बात और है कि हम उसे -
कितना पढ़ पाएं, ख़ुद से बाहर
निकलना नहीं आसां,
ग़र निकल भी
आए, तो
करती है पीछा, रात दिन अपनी ही - -
परछाई, उस हाल में आख़िर
हम जाएं, तो कहाँ
जाएं, दिल की
आवाज़
से निपटना है, बहोत ही मुश्किल, ये -
लौट आती हैं हर बार छू कर
किरदार ए आईना, कि
अक्स अपना
ख़ुद से
छुपाना नहीं मुमकिन, कि घने धुंध में
भी ये बार बार उभर आएं, काश,
समझ पातीं उन्हें अपनी
अंतर्मन की
निगाहें।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by nora kasten
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें