आलोकित पोशाक के अंदर है आदिम काया, अतृप्त अभिलाषों का मरुभूमि है दूर
तक प्रसारित, ख़्वाबों के उड़ान
पुलों पर दौड़ता सा दिखाई
दे मेरा अपना ही साया,
अपने हिस्से की
रौशनी हर
किसी
ने समेट ली, कदाचित मैं जीवनोत्सव में कुछ
देर से आया, आलोकित पोशाक के अंदर
है आदिम काया । ज़रूरी नहीं कि
स्वर्ण प्याले से ही प्यास बुझे,
अंजुरी भर जल ही
काफ़ी है ताज़ा -
दम होने के
लिए, हार
जीत
अपनी जगह थी पहाड़ के मुक़ाबिल रहा एक
अदद झरना, चट्टानों के दरमियां अनवरत
बह कर उसने ख़ुद का रास्ता बनाया,
वक़्त का रोना था बेवजह, क़समों
की फ़ेहरिस्त है बहुत लम्बी
ये और बात है कि किस
ने कितना साथ
निभाया,
आलोकित पोशाक के अंदर है आदिम काया ।
- - शांतनु सान्याल