14 अगस्त, 2025

अंदरुनी दुनिया - -

कुछ अधूरे ख़्वाब निःशब्द आ कर

छोड़ जाते हैं मूक चीत्कार,
करवटों में ज़िन्दगी
ढूंढती है बिखरे
हुए अश्रुमय
मोती,
दूरस्थ समुद्र की लहरों में कहीं गुम है
हरित द्वीप का प्रकाश स्तम्भ, फिर
भी नहीं बुझती अंतरतम की
नील ज्योति, आहत
पंखों से जाना
है दिगंत
पार,
कुछ अधूरे ख़्वाब निःशब्द आ कर
छोड़ जाते हैं मूक चीत्कार ।
कुछ लम्हें हमारे मध्य
हैं ठहरे हुए जल -
प्रपात, भिगो
जाएंगे
एक
दिन अकस्मात, अभी आसमान है
मेघमय, इंद्रधनुष पुनः उभरेगा
रुक जाए ज़रा विक्षिप्त
बरसात, कौन भला
है अंदर तक
इस जहां
में मुतमइन, हर कोई ऊपर से दिखाता
है कुछ और, भीतर से है मगर
बेक़रार, कुछ अधूरे ख़्वाब
निःशब्द आ कर  छोड़
जाते हैं मूक
चीत्कार ।
- - शांतनु सान्याल

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