कोई किसी का इंतज़ार नहीं करता फिर भी लौटना पड़ता है उसी ठिकाने,
ज़माना कितना ही क्यूं न
बदल जाए ज़ेहन से
नहीं उतरते हैं
वही गीत
पुराने,
हर
चीज़ की है मुकर्रर ख़त्म होने की तारीख़,
मैंने तो अदा की है ज़िन्दगी को इक
अदद महसूल, तक़दीर में क्या
है ख़ुदा जाने, उम्र भर का
हिसाब मांगते हैं मेरे
चाहने वाले, तर्क
ए ताल्लुक़
के हैं
हज़ार बहाने, मुझे मालूम है बुज़ुर्गख़ाने
का पता, अपने ही घर में जब कोई
शख़्स हो जाए बेगाना, बाक़ी
चेहरे तब हो जाते हैं अपने
आप ही अनजाने, कोई
किसी का इंतज़ार
नहीं करता
फिर
भी लौटना पड़ता है उसी ठिकाने - - -
- - शांतनु सान्याल
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