16 अगस्त, 2025

उम्मीद की लकीरें - -

ख़्वाबों को मुसलसल सीने से लगाए रखिए,

सुबह होने तलक इस रात को जगाए रखिए,

उम्मीद की लकीरों में है छुपा जीवन सारांश,
दिल में यूँ तसव्वुर ए फ़िरदौस बनाए रखिए,

इस बज़्म की दिल फ़रेब हैं रस्म ओ रिवाज,
दहलीज़ पे इक शाम ए चिराग़ जलाए रखिए,

उम्रभर की वाबस्तगी थी लेकिन दोस्ती न हुई,
हाथ मिलाने का सिलसिला यूंही बनाए रखिए,

मुख़्तसर है इस जहां में दौर ए मेहमांनवाज़िश,
नक़ली गुलों से आशियां अपना सजाए रखिए,

कोई नहीं होता सफ़र ए ज़िन्दगी का हमसफ़र,
अकेले चलने का हौसला हमेशा बनाए रखिए,
- - शांतनु सान्याल

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