पुरातन अंध कुआँ सभी आवाज़ को अपने अंदर कर जाता है समाहित, वो शब्द
जो जीवन को हर्षोल्लास दें बस
वही होते हैं प्रतिध्वनित,
दुःखद अध्याय रह
जाते हैं शैवाल
बन कर,
उभर
आते हैं उस के देह से जलज वनस्पति, वट
पीपल के असंख्य प्रशाखा, लोग भूल
जाते हैं क्रमशः उसका अस्तित्व,
वो ममत्व जो कभी करता
रहा अभिमंत्रित, पुरातन
अंध कुआँ सभी
आवाज़ को
अपने
अंदर कर जाता है समाहित । कालांतर में
कहीं कुछ शब्द बिखरे मिल जाएंगे
खण्डहरों के पत्थरों में, अज्ञात
लिपियों में लिखे रह जाते
हैं मनोव्यथाएं जिन्हें
कभी कोई पढ़
ही नहीं
पाता,
दबे रह जाती हैं जीर्ण पत्तों के नीचे अनगिनत
अप्रकाशित कविताएं, कुछ भावनाएं
होती हैं चिर अनाश्रित, पुरातन
अंध कुआँ सभी आवाज़
को अपने अंदर कर
जाता है
समाहित ।
- - शांतनु सान्याल
वाह
जवाब देंहटाएं