10 अगस्त, 2025

कुहासे का सफ़र - -

छाया निहित माया, स्वप्न के अंदर स्वप्न का

उद्गम, ठूँठ के जड़ से उभरे जीवन वृक्ष,
ढूंढे आकाश पथ में आलोक उत्स,
वक़्त का हिंडोला घूमे निरंतर,
दर्पण के भीतर हज़ार
दर्पण, कौन प्रकृत
कौन भरम,
स्वप्न के
अंदर स्वप्न का उद्गम । घर के अंदर अनेक
घर, हृदय तलाशे नाहक़ नया शहर,
अमर लता सम प्रणय पाश
देह बने मृत काठ, प्राण
खोजे अनवरत पुनर
जीवन का मधु
मास, एक
मोड़
पर जा रुके सितारों का जुलूस, अन्य मोड़
से निकले सुबह की धूप सहम सहम,
स्वप्न के अंदर स्वप्न
का उद्गम ।
- - शांतनु सान्याल

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