काश, रूह की गहराइयों में, कभी उतर कर देखते,
न जाने किस आस में रुका रहा अध खिला गुलाब,
रूबरू चश्मे आईना, कुछ देर ज़रा ठहर कर देखते,
ज़िन्दगी का कड़ुआ सच रहे अपनी जगह बरक़रार,
किसी और की ख़ातिर ही सही सज संवर कर देखते,
यूँ तो हर एक मोड़ पर हैं बेशुमार कोह आतिशफिशां,
कुछ एक कदम
कहते हैं यक़ीं पर ही ठहरा हुआ है ये नीला आसमां,
सीना ए संदूक पर, ज़ेवर ए वफ़ा को नज़्र कर देखते,
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- - शांतनु सान्याल