झूलती सी हैं परछाइयां अहाते में कहीं सूख
रहे हैं भीगे पल, जीने की ख़्वाहिश बढ़ा
गई है निशांत की बरसात, मझधार
का द्वीप डूब चुका है बहुत
ही पहले, अब है लहर
ही लहर, हद ए
नज़र, हम
ढूंढते
हैं अंतःनील में सुबह को एक साथ, जीने -
की ख़्वाहिश बढ़ा गई है निशांत की
बरसात। न जाने कितने ही
पागल हवाओं से निकल
कर छुआ है तुम्हें
सुख पाखी,
एक
छुअन, जो सांसों को दे जाए अनगिनत
स्पंदन, एक दीर्घ निःस्तब्धता जो
मिटा जाए व्यथित रूह की
थकन, जो दिला जाए
देह प्राण को सभी
दुःख दर्द से
निजात,
जीने
की ख़्वाहिश बढ़ा गई है निशांत की - -
बरसात।
* *
- - शांतनु सान्याल
24 जून, 2021
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एक दीर्घ निःस्तब्धता जो
जवाब देंहटाएंमिटा जाए व्यथित रूह की
थकन, जो दिला जाए
देह प्राण को सभी
दुःख दर्द से
निजात,
जीने
की ख़्वाहिश बढ़ा गई है निशांत की - -
बरसात।
दिन भर के तप्त कष्ट को झेलने की सामर्थ्य देने वाली निशांत की बरसात...।
बहुत ही सुन्दर... लाजवाब
वाह!!!
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंन जाने कितने ही
जवाब देंहटाएंपागल हवाओं से निकल
कर छुआ है तुम्हें
सुख पाखी,
एक
छुअन, जो सांसों को दे जाए अनगिनत
स्पंदन, वाह बेहतरीन रचना आदरणीय।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंवाह! बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंवाह 👌♥️🌻
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर रचना आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसादर
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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