31 दिसंबर, 2013
कोई ख्वाब अनदेखा - -
तुम भी वही, रस्म ए ज़माना भी
वही, मुझ में भी कोई ख़ास
तब्दीली नहीं, फिर
भी जी चाहता
देखें, कोई
ख्वाब
अनदेखा, इक रास्ता जो गुज़रता
हो ख़ामोश, खिलते दरख्तों
के दरमियां दूर तक,
इक अहसास
जो दे
सके ज़मानत ए हयात, इक - -
मुस्कुराहट जो भर जाए
दिल का ख़ालीपन,
इसके आलावा
और क्या
चाहिए, मुख़्तसर ज़िन्दगी के -
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
वही, मुझ में भी कोई ख़ास
तब्दीली नहीं, फिर
भी जी चाहता
देखें, कोई
ख्वाब
अनदेखा, इक रास्ता जो गुज़रता
हो ख़ामोश, खिलते दरख्तों
के दरमियां दूर तक,
इक अहसास
जो दे
सके ज़मानत ए हयात, इक - -
मुस्कुराहट जो भर जाए
दिल का ख़ालीपन,
इसके आलावा
और क्या
चाहिए, मुख़्तसर ज़िन्दगी के -
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
30 दिसंबर, 2013
ज़िन्दगी की मानिंद - -
हर बार, न जाने कौन, आखरी पहर
से पहले, बिखेर जाता है रेत
के महल, हर इक रात,
सुबह से कुछ
पहले, मैं
दोबारा बुनता हूँ तेरी सूनी निगाहों -
में कुछ रेशमी ख्वाब, ख़ुश्बुओं
के महीन धागों से बुने
उन ख्वाबों में हैं
मेरे नाज़ुक
जज़्बात,
ये राज़ ए तख़लीक तुझे मालूम भी
है या नहीं, कहना है मुश्किल,
फिर भी, न जाने क्यूँ
ऐसा लगता है
कि तू है
शामिल, मेरी धड़कनों में ज़िन्दगी
की मानिंद - -
से पहले, बिखेर जाता है रेत
के महल, हर इक रात,
सुबह से कुछ
पहले, मैं
दोबारा बुनता हूँ तेरी सूनी निगाहों -
में कुछ रेशमी ख्वाब, ख़ुश्बुओं
के महीन धागों से बुने
उन ख्वाबों में हैं
मेरे नाज़ुक
जज़्बात,
ये राज़ ए तख़लीक तुझे मालूम भी
है या नहीं, कहना है मुश्किल,
फिर भी, न जाने क्यूँ
ऐसा लगता है
कि तू है
शामिल, मेरी धड़कनों में ज़िन्दगी
की मानिंद - -
27 दिसंबर, 2013
दाँव पे लगा दिया - -
तुम्हारी चाहतों में है कितनी सदाक़त
ये सिर्फ़ तुम्हें है ख़बर, हमने तो
ज़िन्दगी यूँ ही दाँव पे
लगा दिया, हर
मोड़ पर
हिसाब ए मंज़िल आसां नहीं, तुम्हें - -
इसलिए दिल में मुस्तक़ल तौर
पे बसा लिया, वो हँसते हैं
मेरी दीवानगी पे
अक्सर !
गोया हमने वस्त सहरा कोई गुलिस्तां
सजा लिया, ख़ानाबदोश थे इक
मुद्दत से मेरे जज़्बात, जो
तुम्हें देखा भूल गए
सभी रस्ते,
छोड़
दिया ताक़ीब ए क़ाफ़िला, आख़िर में
हमने, तुम्हारी आँखों में कहीं
इक घर बना लिया, हमने
तो ज़िन्दगी यूँ ही
दाँव पे लगा
दिया -
* *
- शांतनु सान्याल
ये सिर्फ़ तुम्हें है ख़बर, हमने तो
ज़िन्दगी यूँ ही दाँव पे
लगा दिया, हर
मोड़ पर
हिसाब ए मंज़िल आसां नहीं, तुम्हें - -
इसलिए दिल में मुस्तक़ल तौर
पे बसा लिया, वो हँसते हैं
मेरी दीवानगी पे
अक्सर !
गोया हमने वस्त सहरा कोई गुलिस्तां
सजा लिया, ख़ानाबदोश थे इक
मुद्दत से मेरे जज़्बात, जो
तुम्हें देखा भूल गए
सभी रस्ते,
छोड़
दिया ताक़ीब ए क़ाफ़िला, आख़िर में
हमने, तुम्हारी आँखों में कहीं
इक घर बना लिया, हमने
तो ज़िन्दगी यूँ ही
दाँव पे लगा
दिया -
* *
- शांतनु सान्याल
26 दिसंबर, 2013
किसी ने छुआ था दिल मेरा - -
इक तूफ़ान सा उठा कांपते साहिल में
कहीं, या किसी ने छुआ था दिल
मेरा क़ातिल निगाह से,
मंज़िल थी मेरे
सामने
और मैं भटकता रहा तमाम रात, न
जाने किस ने पुकारा था, मुझे
तिश्नगी भरी चाह से,
उस मुश्ताक़
नज़र
का असर था, या मैंने ली अपने आप
ही अहद ए दहन, न जाने क्यूँ
इक धुआं सा उठता रहा
लौटती हुई बहारों
के राह से,
थकन
भरी उन लम्हात में भी ऐ ज़िन्दगी -
देखा तुम्हें, यूँ ही मुस्कुराते,
सब कुछ लुटा कर
लापरवाह से,
किसी ने
छुआ था दिल मेरा क़ातिल निगाह से,
* *
- शांतनु सान्याल
कहीं, या किसी ने छुआ था दिल
मेरा क़ातिल निगाह से,
मंज़िल थी मेरे
सामने
और मैं भटकता रहा तमाम रात, न
जाने किस ने पुकारा था, मुझे
तिश्नगी भरी चाह से,
उस मुश्ताक़
नज़र
का असर था, या मैंने ली अपने आप
ही अहद ए दहन, न जाने क्यूँ
इक धुआं सा उठता रहा
लौटती हुई बहारों
के राह से,
थकन
भरी उन लम्हात में भी ऐ ज़िन्दगी -
देखा तुम्हें, यूँ ही मुस्कुराते,
सब कुछ लुटा कर
लापरवाह से,
किसी ने
छुआ था दिल मेरा क़ातिल निगाह से,
* *
- शांतनु सान्याल
23 दिसंबर, 2013
प्रणय अनुबंध - -
वास्तविकता जो भी हो स्वप्न टूटने के बाद,
बुरा क्या है, कुछ देर तो महके निशि -
पुष्प बिखरने से पहले, फिर
जागे चाँद पर जाने की
अभिलाषा, फिर
पुकारो तुम
मुझे
अपनी आँखों से ज़रा, अशेष गंतव्य हैं अभी
अंतरिक्ष के परे, उस नील प्रवाह में चलो
बह जाएँ कहीं शून्य की तरह, ये
रात लम्बी हो या बहोत
छोटी, कुछ भी
अंतर नहीं,
कोई
अनुराग तो जागे, जो कर जाए देह प्राण को
अंतहीन सुरभित, अनंतकालीन प्रणय
अनुबंध की तरह - -
* *
- शांतनु सान्याल
बुरा क्या है, कुछ देर तो महके निशि -
पुष्प बिखरने से पहले, फिर
जागे चाँद पर जाने की
अभिलाषा, फिर
पुकारो तुम
मुझे
अपनी आँखों से ज़रा, अशेष गंतव्य हैं अभी
अंतरिक्ष के परे, उस नील प्रवाह में चलो
बह जाएँ कहीं शून्य की तरह, ये
रात लम्बी हो या बहोत
छोटी, कुछ भी
अंतर नहीं,
कोई
अनुराग तो जागे, जो कर जाए देह प्राण को
अंतहीन सुरभित, अनंतकालीन प्रणय
अनुबंध की तरह - -
* *
- शांतनु सान्याल
20 दिसंबर, 2013
आत्मीयता की ऊष्मा - -
उस शून्य में जब, सब कुछ खोना है
एक दिन, वो प्रतिध्वनि जो
नहीं लौटती पुष्पित
घाटियों को
छू कर,
एक अंतहीन यात्रा, जिसका कोई -
अंतिम बिंदु नहीं, वो अनुबंध
जो अदृश्य हो कर भी
चले परछाई की
तरह,
एक उड़ान जो ले जाए दिगंत रेखा
के उस पार, कहना है मुश्किल
कि बिहान तब तक
प्रतीक्षा कर भी
पाए या
नहीं, फिर भी जीवन यात्रा रूकती
नहीं, तुम और मैं, सह यात्री
हैं ये कुछ कम तो नहीं,
कुछ दूर ही सही,
इस धुंध
भरी राहों में आत्मीयता की ऊष्मा
कुछ पल तो मिले - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
pink beauty 1
एक दिन, वो प्रतिध्वनि जो
नहीं लौटती पुष्पित
घाटियों को
छू कर,
एक अंतहीन यात्रा, जिसका कोई -
अंतिम बिंदु नहीं, वो अनुबंध
जो अदृश्य हो कर भी
चले परछाई की
तरह,
एक उड़ान जो ले जाए दिगंत रेखा
के उस पार, कहना है मुश्किल
कि बिहान तब तक
प्रतीक्षा कर भी
पाए या
नहीं, फिर भी जीवन यात्रा रूकती
नहीं, तुम और मैं, सह यात्री
हैं ये कुछ कम तो नहीं,
कुछ दूर ही सही,
इस धुंध
भरी राहों में आत्मीयता की ऊष्मा
कुछ पल तो मिले - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
pink beauty 1
इक क़रारदार - -
वक़्त की अपनी है रस्म वसूली, बचना
आसां नहीं, चेहरे ओ आईने के
दरमियां थे जो क़रारदार,
उभरते झुर्रियों ने
उसे तोड़
दिया,
न तुम हो जवाबदेह, न कोई सवाल हैं --
बाक़ी मेरे पास, इक ख़ामोशी !
जो न कहते हुए कह -
जाए, अफ़साना
ए ज़िन्दगी,
ग़लत
था लिफ़ाफ़े पर लिखा पता या किसी ने -
पढ़ कर ख़त यूँ ही लौटा दिया, नहीं
देखा मुद्दतों से बोगनविलिया
को संवरते, शायद
उसने इस राह
से अब
गुज़रना तक छोड़ दिया,चेहरे ओ आईने-
के दरमियां थे जो क़रारदार,उभरते
झुर्रियों ने उसे तोड़
दिया,
* *
- शांतनु सान्याल
आसां नहीं, चेहरे ओ आईने के
दरमियां थे जो क़रारदार,
उभरते झुर्रियों ने
उसे तोड़
दिया,
न तुम हो जवाबदेह, न कोई सवाल हैं --
बाक़ी मेरे पास, इक ख़ामोशी !
जो न कहते हुए कह -
जाए, अफ़साना
ए ज़िन्दगी,
ग़लत
था लिफ़ाफ़े पर लिखा पता या किसी ने -
पढ़ कर ख़त यूँ ही लौटा दिया, नहीं
देखा मुद्दतों से बोगनविलिया
को संवरते, शायद
उसने इस राह
से अब
गुज़रना तक छोड़ दिया,चेहरे ओ आईने-
के दरमियां थे जो क़रारदार,उभरते
झुर्रियों ने उसे तोड़
दिया,
* *
- शांतनु सान्याल
19 दिसंबर, 2013
कभी तो आ मेरी ज़िन्दगी में - -
कभी तो आ मेरी ज़िन्दगी में अबाध -
पहाड़ी नदी की तरह, कि है मेरा
वजूद बेक़रार, मुक्कमल
बिखरने के लिए,
धुंध में डूबे
रहें दूर
तक, दुनिया के तमाम सरहद, कभी -
तो आ मेरी ज़िन्दगी में परिन्दा
ए मुहाजिर की तरह, कि
है मेरी मुहोब्बत ज़िंदा
तुझ पे सिर्फ़
मिटने
के लिए, उठे कहीं शोले ए आतिश - -
फ़िशां, या हो बुहरान ज़माने
के सीने में, कभी तो आ
मेरी ज़िन्दगी
में किसी
दुआ ख़ैर की तरह, है बेताब दिल - -
मेरा इश्क़ में, यूँ ही ख़ामोश
सुलगने के
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
पहाड़ी नदी की तरह, कि है मेरा
वजूद बेक़रार, मुक्कमल
बिखरने के लिए,
धुंध में डूबे
रहें दूर
तक, दुनिया के तमाम सरहद, कभी -
तो आ मेरी ज़िन्दगी में परिन्दा
ए मुहाजिर की तरह, कि
है मेरी मुहोब्बत ज़िंदा
तुझ पे सिर्फ़
मिटने
के लिए, उठे कहीं शोले ए आतिश - -
फ़िशां, या हो बुहरान ज़माने
के सीने में, कभी तो आ
मेरी ज़िन्दगी
में किसी
दुआ ख़ैर की तरह, है बेताब दिल - -
मेरा इश्क़ में, यूँ ही ख़ामोश
सुलगने के
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
18 दिसंबर, 2013
फिर कभी सही - -
बहोत मुश्किल है, पाना इस भीड़ में
पल दो पल का सुकूं, हर सिम्त
इक रक़ाबत, हर तरफ
इक अजीब सी
बेचैनी,
हर चेहरे में है गोया ग़िलाफ़ ए जुनूं,
न ले अहद, इन परछाइयों में
कहीं, कि ये दरख़्त भी
लगते है जैसे
रूह परेशां,
दिल चाहता तो है, कि खोल दे बंद -
पंखुड़ियों को हौले हौले, लेकिन
न जाने क्यूँ है आज ये
मौसम भी कुछ
बदगुमां,
न झर जाएँ कहीं ये नाज़ुक, वरक़
ए जज़्बात, रात ढलने से पहले,
कुछ तूफ़ानी सा लगे है
फिर ये आसमां,
न चाँद का
पता,
नहीं सितारों की चहल पहल दूर - -
तक, आज रहने भी दे मेरे
हमनशीं, शबनम में
भीगने की आरज़ू
बेइंतहा !
* *
- शांतनु सान्याल
पल दो पल का सुकूं, हर सिम्त
इक रक़ाबत, हर तरफ
इक अजीब सी
बेचैनी,
हर चेहरे में है गोया ग़िलाफ़ ए जुनूं,
न ले अहद, इन परछाइयों में
कहीं, कि ये दरख़्त भी
लगते है जैसे
रूह परेशां,
दिल चाहता तो है, कि खोल दे बंद -
पंखुड़ियों को हौले हौले, लेकिन
न जाने क्यूँ है आज ये
मौसम भी कुछ
बदगुमां,
न झर जाएँ कहीं ये नाज़ुक, वरक़
ए जज़्बात, रात ढलने से पहले,
कुछ तूफ़ानी सा लगे है
फिर ये आसमां,
न चाँद का
पता,
नहीं सितारों की चहल पहल दूर - -
तक, आज रहने भी दे मेरे
हमनशीं, शबनम में
भीगने की आरज़ू
बेइंतहा !
* *
- शांतनु सान्याल
16 दिसंबर, 2013
राज़ ए निगाह - -
नज़दीकियों के दरमियां मौजूद इक
ख़ामोशी, बुझती शमा से वो
उभरता धुआँ, झुकी
निगाहों से बूंद
बूंद - -
बिखरती वो मख़मली रौशनी, इक -
पुरजोश दायरा, या उतरने को
है ज़मीं पर मजलिस ए
सितारा, लहरों में
है मरमोज़
बेकली,
या बेक़रार सा है टूटने को दिल का -
किनारा, न जाने क्या है, उसके
दिल में पिन्हां, इक थमी
सी बरसात या बहने
को है ये शहर
सारा !
कहना है बहोत मुश्किल तासीर ए -
इश्क़, इक साँस में बहिश्त !
इक नज़र में उसकी है
छुपी अनगिनत
नेमतों की
धारा।
* *
- शांतनु सान्याल
ख़ामोशी, बुझती शमा से वो
उभरता धुआँ, झुकी
निगाहों से बूंद
बूंद - -
बिखरती वो मख़मली रौशनी, इक -
पुरजोश दायरा, या उतरने को
है ज़मीं पर मजलिस ए
सितारा, लहरों में
है मरमोज़
बेकली,
या बेक़रार सा है टूटने को दिल का -
किनारा, न जाने क्या है, उसके
दिल में पिन्हां, इक थमी
सी बरसात या बहने
को है ये शहर
सारा !
कहना है बहोत मुश्किल तासीर ए -
इश्क़, इक साँस में बहिश्त !
इक नज़र में उसकी है
छुपी अनगिनत
नेमतों की
धारा।
* *
- शांतनु सान्याल
13 दिसंबर, 2013
फ़लसफ़ा ए दीन दुनिया - -
वो नज़दीकियाँ इक अहसास ए राहत थीं,
जैसे शाम की बारिश के बाद, ज़रा
सी ज़िन्दगी मिले कहीं तपते
रेगिस्तां को अचानक,
मुरझाए गुल को
जैसे क़रार
आए
आधी रात के बाद, कि दिल की परतों पे
गिरे ओस, बूंद बूंद, वो तेरा इश्क़
था, या इब्तलाह रस्मी, जो
भी हो, उन निगाहों में
हमने दोनों जहां
पा लिया,
अब
किसे है ग़ैर हक़ीक़ी ख्वाहिश, उन लम्हों
में हमने जाना ज़िन्दगी की बेशुमार
ख़ूबसूरती, उन लम्हों में हमने
छोड़ दी वो तमाम उलझे
हुए, फ़लसफ़ा ए
दीन दुनिया !
* *
- शांतनु सान्याल
जैसे शाम की बारिश के बाद, ज़रा
सी ज़िन्दगी मिले कहीं तपते
रेगिस्तां को अचानक,
मुरझाए गुल को
जैसे क़रार
आए
आधी रात के बाद, कि दिल की परतों पे
गिरे ओस, बूंद बूंद, वो तेरा इश्क़
था, या इब्तलाह रस्मी, जो
भी हो, उन निगाहों में
हमने दोनों जहां
पा लिया,
अब
किसे है ग़ैर हक़ीक़ी ख्वाहिश, उन लम्हों
में हमने जाना ज़िन्दगी की बेशुमार
ख़ूबसूरती, उन लम्हों में हमने
छोड़ दी वो तमाम उलझे
हुए, फ़लसफ़ा ए
दीन दुनिया !
* *
- शांतनु सान्याल
12 दिसंबर, 2013
हद ए नज़र - -
हद ए नज़र से आगे, क्या है किसे ख़बर,
तू है मुख़ातिब जो मेरे, अब रूह ए
आसमानी से क्या लेना, न
है किसी मंज़िल की
तलाश, न ही
ख्वाहिश
अनबुझी, तेरी इक निगाह के आगे अब
नादीद मेहरबानी से क्या लेना, उठे
फिर न कहीं कोई तूफ़ान, इक
अजीब सी ख़ामोशी है -
ग़ालिब, मरकज़
ए शहर में,
अब जो
भी हो अंजाम, अब ज़माने की परेशानी
से क्या लेना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
The Legend of the Willow
तू है मुख़ातिब जो मेरे, अब रूह ए
आसमानी से क्या लेना, न
है किसी मंज़िल की
तलाश, न ही
ख्वाहिश
अनबुझी, तेरी इक निगाह के आगे अब
नादीद मेहरबानी से क्या लेना, उठे
फिर न कहीं कोई तूफ़ान, इक
अजीब सी ख़ामोशी है -
ग़ालिब, मरकज़
ए शहर में,
अब जो
भी हो अंजाम, अब ज़माने की परेशानी
से क्या लेना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
The Legend of the Willow
11 दिसंबर, 2013
तमाम रात - -
हर सिम्त गोया धुंध के बादल और
ज़िन्दगी दूर, डूबती वादी की
तरह नज़र आई, तेरे
लौट जाने के
बाद,
तमाम रात, हर तरफ छायी रही -
इक अंतहीन तन्हाई, न ही
चाँद, न सितारे, न ही
गुल ए शबाना दे
पाए, हमें
इक
पल राहत ए हयात, जिस्म ओ जां
जलते रहे ख़ामोश, दम ब दम
तेरे लौट जाने के बाद,
तमाम रात ! तू
था कोई रूह -
मसीहा
या -
कोई ख़ूबसूरत क़ातिल नज़र, न -
कोई धुआं सा उठा जिगर
से, न बहे निगाहों से
क़तरा अश्क,
फिर भी
बहोत
था
मुश्किल दर्द से उभरना, तेरे लौट
जाने बाद, तमाम रात,
* *
- शांतनु सान्याल
ज़िन्दगी दूर, डूबती वादी की
तरह नज़र आई, तेरे
लौट जाने के
बाद,
तमाम रात, हर तरफ छायी रही -
इक अंतहीन तन्हाई, न ही
चाँद, न सितारे, न ही
गुल ए शबाना दे
पाए, हमें
इक
पल राहत ए हयात, जिस्म ओ जां
जलते रहे ख़ामोश, दम ब दम
तेरे लौट जाने के बाद,
तमाम रात ! तू
था कोई रूह -
मसीहा
या -
कोई ख़ूबसूरत क़ातिल नज़र, न -
कोई धुआं सा उठा जिगर
से, न बहे निगाहों से
क़तरा अश्क,
फिर भी
बहोत
था
मुश्किल दर्द से उभरना, तेरे लौट
जाने बाद, तमाम रात,
* *
- शांतनु सान्याल
कोई ख्वाब बंजारा - -
मुड़ के अब देखने से हासिल कुछ भी नहीं,
कहाँ रुकता है किसी के लिए मौसम
ए बहार, न बाँध इस क़दर
दिल की गिरह कि
साँस लेना भी
हो जाए
मुश्किल, कुछ तो जगह चाहिए अहाते में
इक मुश्त रौशनी के लिए, कि अध
खिले फूलों को, पूरी तरह से
खिलने का इक मौक़ा
तो मिले, इस
मोड़ पे
तू ही अकेला राही नहीं ऐ दोस्त, किसे - -
ख़बर कहीं से, फिर कोई कारवां
ए ज़िन्दगी आ मिले, कोई
ख्वाब बंजारा, कोई
ढूँढ़ता किनारा,
अचानक
फिर तेरी निगाहों में भर जाए आस की
बूंदें, दरिया ए ज़िन्दगी नहीं सूखती
बादलों के फ़रेब से, शर्त बस
इतनी है, कि इंतज़ार
ए सावन न जाए
सूख - -
* *
- शांतनु सान्याल
कहाँ रुकता है किसी के लिए मौसम
ए बहार, न बाँध इस क़दर
दिल की गिरह कि
साँस लेना भी
हो जाए
मुश्किल, कुछ तो जगह चाहिए अहाते में
इक मुश्त रौशनी के लिए, कि अध
खिले फूलों को, पूरी तरह से
खिलने का इक मौक़ा
तो मिले, इस
मोड़ पे
तू ही अकेला राही नहीं ऐ दोस्त, किसे - -
ख़बर कहीं से, फिर कोई कारवां
ए ज़िन्दगी आ मिले, कोई
ख्वाब बंजारा, कोई
ढूँढ़ता किनारा,
अचानक
फिर तेरी निगाहों में भर जाए आस की
बूंदें, दरिया ए ज़िन्दगी नहीं सूखती
बादलों के फ़रेब से, शर्त बस
इतनी है, कि इंतज़ार
ए सावन न जाए
सूख - -
* *
- शांतनु सान्याल
ख़ुली किताब की मानिंद - -
ख़ुली किताब की मानिंद, हमने अपना
वजूद रख दिया दर मुक़ाबिल
तुम्हारे, अब नुक़ता
नज़र की बात
है काश
बता देते तुम, क्या है फ़ैसला दिल में -
तुम्हारे, कोई भी मुकम्मल नहीं
इस जहान में, कुछ न कुछ
तो कमी रहती है,
हर एक
इंसान में, न कर तलाश बेइंतहा ख़ुशी
के लिए, कि ये वो तितली है, जो
छूते ही उड़ जाए, पलक
झपकते, किसी
और ही
महकते गुलिस्तान में, न देख मुझे यूँ
हैरत भरी नज़र से, अभी तलक
तुमने तो पलटा ही नहीं,
एक भी सफ़ह्
ज़िन्दगी
का, सरसरी नज़र से न कर अन्दाज़ -
दिल की गहराइयों का - -
* *
- शांतनु सान्याल
वजूद रख दिया दर मुक़ाबिल
तुम्हारे, अब नुक़ता
नज़र की बात
है काश
बता देते तुम, क्या है फ़ैसला दिल में -
तुम्हारे, कोई भी मुकम्मल नहीं
इस जहान में, कुछ न कुछ
तो कमी रहती है,
हर एक
इंसान में, न कर तलाश बेइंतहा ख़ुशी
के लिए, कि ये वो तितली है, जो
छूते ही उड़ जाए, पलक
झपकते, किसी
और ही
महकते गुलिस्तान में, न देख मुझे यूँ
हैरत भरी नज़र से, अभी तलक
तुमने तो पलटा ही नहीं,
एक भी सफ़ह्
ज़िन्दगी
का, सरसरी नज़र से न कर अन्दाज़ -
दिल की गहराइयों का - -
* *
- शांतनु सान्याल
09 दिसंबर, 2013
कोई शिकायत नहीं - -
फिर अंधेरों से निकल कर देखा है, तुझे
ऐ ज़िन्दगी इक नए अंदाज़ से,
किसी का यक़ीं कहाँ तक
मुमकिन, हमसाया
भी गुज़र जाए
कई बार,
अजनबी की तरह बहोत नज़दीक, यूँही
आसपास से, फिर भी ज़िन्दगी को
है हर हाल में चलते जाना,
इसी अंतहीन सफ़र
में हैं कहीं
सायादार दरख़्त, और कहीं उभरते ठूँठ
भी, कहीं फूलों की पगडंडियां तो
कहीं बिखरे हुए अनजाने
काँटों भरे रास्ते,
कभी तेरी
मुहोब्बत ले जाए मुझे रौशनी के बहाव
में, कभी तू रख जाए मुझे यूँ ही
ख़ारिज़ ए अहसास, किसी
उफनती नदी के
कटाव में,
फिर भी कोई शिकायत नहीं ए ज़िन्दगी
तुझसे - -
* *
- शांतनु सान्याल
ऐ ज़िन्दगी इक नए अंदाज़ से,
किसी का यक़ीं कहाँ तक
मुमकिन, हमसाया
भी गुज़र जाए
कई बार,
अजनबी की तरह बहोत नज़दीक, यूँही
आसपास से, फिर भी ज़िन्दगी को
है हर हाल में चलते जाना,
इसी अंतहीन सफ़र
में हैं कहीं
सायादार दरख़्त, और कहीं उभरते ठूँठ
भी, कहीं फूलों की पगडंडियां तो
कहीं बिखरे हुए अनजाने
काँटों भरे रास्ते,
कभी तेरी
मुहोब्बत ले जाए मुझे रौशनी के बहाव
में, कभी तू रख जाए मुझे यूँ ही
ख़ारिज़ ए अहसास, किसी
उफनती नदी के
कटाव में,
फिर भी कोई शिकायत नहीं ए ज़िन्दगी
तुझसे - -
* *
- शांतनु सान्याल
07 दिसंबर, 2013
सुबह की नाज़ुक धूप - -
महकी महकी सी, इस सुबह की नाज़ुक
धूप में है शामिल तू कहीं, आईने
के मनुहार में लिपटी, मेरे
अक्स की गहराइयों
में है गुम तू
कहीं - -
खुली इत्रदान पूछती है अक्सर मुझसे -
कौन है वो ख़ूबसूरत अहसास, जो
मुझसे पहले है, घुला घुला सा
तेरे जिस्म ओ जां में
बड़ी शिद्दत से -
इस क़दर !
ये तेरी मुहोब्बत की है इन्तहां या मेरी
ज़िन्दगी के मानी है तेरी आरज़ू,
कुछ भी हो सकते हैं दर
अमल ए ज़माना,
लेकिन ये
सच है,
कि तू है दूर तक मशमूल मेरी रूह की -
गहराइयों में कही, पुर असर
अंदाज़ में मौजूद - -
* *
- शांतनु सान्याल
धूप में है शामिल तू कहीं, आईने
के मनुहार में लिपटी, मेरे
अक्स की गहराइयों
में है गुम तू
कहीं - -
खुली इत्रदान पूछती है अक्सर मुझसे -
कौन है वो ख़ूबसूरत अहसास, जो
मुझसे पहले है, घुला घुला सा
तेरे जिस्म ओ जां में
बड़ी शिद्दत से -
इस क़दर !
ये तेरी मुहोब्बत की है इन्तहां या मेरी
ज़िन्दगी के मानी है तेरी आरज़ू,
कुछ भी हो सकते हैं दर
अमल ए ज़माना,
लेकिन ये
सच है,
कि तू है दूर तक मशमूल मेरी रूह की -
गहराइयों में कही, पुर असर
अंदाज़ में मौजूद - -
* *
- शांतनु सान्याल
05 दिसंबर, 2013
कहीं न कहीं इक दिन - -
आईने का शहर कोई, फिर भी तेरी महफ़िल
लगे बहोत फ़ीकी फ़ीकी, न कहीं कोई
उभरता अक्स देखा, न ही नूर
कोई तिलिस्म आमेज़,
हर चेहरे पे है इक
नक़ली परत,
या कोई
ख़त गुमनाम, हर निगाह गोया दर जुस्तजू -
ढूंढ़ती है ख़ुद का पता, इस मुखौटे के
हुजूम में न जाने क्यूँ, वजूद
भी अपना लगे कुछ
कुछ अजनबी,
ये जहां
है कैसी, न डुबाए पुरसुकून से, न हीं उभारे -
ये ज़िन्दगी ! उड़ते अभ्र हैं, या है तेरी
वो मुहोब्बत, मेरा दिल तलाशे
सायादार इक ज़मीं, न
हो जाएँ इस
चाह में
मेरी हसरतकुन आँखें, इक दिन बंजर कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
chinese art 1
लगे बहोत फ़ीकी फ़ीकी, न कहीं कोई
उभरता अक्स देखा, न ही नूर
कोई तिलिस्म आमेज़,
हर चेहरे पे है इक
नक़ली परत,
या कोई
ख़त गुमनाम, हर निगाह गोया दर जुस्तजू -
ढूंढ़ती है ख़ुद का पता, इस मुखौटे के
हुजूम में न जाने क्यूँ, वजूद
भी अपना लगे कुछ
कुछ अजनबी,
ये जहां
है कैसी, न डुबाए पुरसुकून से, न हीं उभारे -
ये ज़िन्दगी ! उड़ते अभ्र हैं, या है तेरी
वो मुहोब्बत, मेरा दिल तलाशे
सायादार इक ज़मीं, न
हो जाएँ इस
चाह में
मेरी हसरतकुन आँखें, इक दिन बंजर कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
chinese art 1
04 दिसंबर, 2013
सबब इस दीवानगी का - -
ओस की बूंदें थीं या झरे तमाम रात,
ख़मोश निगाहों से दर्द लबरेज़
जज़्बात ! सीने के बहोत
क़रीब हो के भी
कोई, न
छू सका मेरे दिल की बात, बहोत -
चाहा कि कह दूँ , सबब इस
दीवानगी का, लेकिन
तक़ाज़ा ए
इश्क़
और सर्द दहन, हमने ख़ुद ब ख़ुद -
जैसे क़ुबूल किया, अब हश्र
जो भी हो, हमने तो
ज़िन्दगी को
नाज़ुक
मोड़ पे ला, मौज क़िस्मत के यूँ ही
भरोसे छोड़ दिया, वो खड़े
हों गोया, टूटते किनारों
पे रूह मंज़िल की
मानिंद,
कि मंझधार हमने जिस्म ओ जां !
जान बूझ के यूँ क़ुर्बान किया।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Beautiful-Lotus-Oil-Paintings-by-Jiang-Debin
ख़मोश निगाहों से दर्द लबरेज़
जज़्बात ! सीने के बहोत
क़रीब हो के भी
कोई, न
छू सका मेरे दिल की बात, बहोत -
चाहा कि कह दूँ , सबब इस
दीवानगी का, लेकिन
तक़ाज़ा ए
इश्क़
और सर्द दहन, हमने ख़ुद ब ख़ुद -
जैसे क़ुबूल किया, अब हश्र
जो भी हो, हमने तो
ज़िन्दगी को
नाज़ुक
मोड़ पे ला, मौज क़िस्मत के यूँ ही
भरोसे छोड़ दिया, वो खड़े
हों गोया, टूटते किनारों
पे रूह मंज़िल की
मानिंद,
कि मंझधार हमने जिस्म ओ जां !
जान बूझ के यूँ क़ुर्बान किया।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Beautiful-Lotus-Oil-Paintings-by-Jiang-Debin
02 दिसंबर, 2013
अँधेरे का सफ़र - -
जो ख़ुद को उजाड़ कर रख दे, इतनी मुहोब्बत
भी ठीक नहीं, अँधेरे का सफ़र इतना
आसां नहीं मेरी जां, शाम से
पहले कुछ रौशनी के
टुकड़े अपने
साथ तो रख लो, न जाने कहाँ दे जाए फ़रेब - -
चाँदनी ! अभ्र वो चाँद के दरमियां,
है क्या राज़ ए पैमां, किसे
ख़बर, बहोत कुछ
नहीं होता
हाथों की लकीरों में लिखा, टूट जाते हैं ख्बाब
बाअज़ औक़ात, निगाहों में ठहरने से
पहले, न कर इतना भी यक़ीं
बुत ए ख़ामोश पर मेरी
जां, कि ये वो शै
है जो - -
कर जाती है असर पोशीदा, सांस रुकने तक
पता ही नहीं चलता, दवा और ज़हर -
शिरीं के असरात - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
old-window-primoz-jenko
भी ठीक नहीं, अँधेरे का सफ़र इतना
आसां नहीं मेरी जां, शाम से
पहले कुछ रौशनी के
टुकड़े अपने
साथ तो रख लो, न जाने कहाँ दे जाए फ़रेब - -
चाँदनी ! अभ्र वो चाँद के दरमियां,
है क्या राज़ ए पैमां, किसे
ख़बर, बहोत कुछ
नहीं होता
हाथों की लकीरों में लिखा, टूट जाते हैं ख्बाब
बाअज़ औक़ात, निगाहों में ठहरने से
पहले, न कर इतना भी यक़ीं
बुत ए ख़ामोश पर मेरी
जां, कि ये वो शै
है जो - -
कर जाती है असर पोशीदा, सांस रुकने तक
पता ही नहीं चलता, दवा और ज़हर -
शिरीं के असरात - -
* *
- शांतनु सान्याल
old-window-primoz-jenko
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...