निष्प्राण आईना तलाशता है इक
अदद चेहरा, मुखौटों के इस
शहर में अब ख़ालिस
अक्स का पता
कोई नहीं
जानता,
दूर
तक है रेत के नीचे रूहों की बस्ती,
दिन है यहाँ गूंगा और रात
जैसे हो सदियों से बहरा,
निष्प्राण आईना
तलाशता है
इक
अदद चेहरा। मृत्यु प्रमाण पत्र ले
कर भी भला कोई क्या करेगा,
हमारे वसीयत में कोई
चाँद सितारा न
था, बदल
दो वो
सभी तथाकथित मोक्ष के रास्ते,
कहने को सभी थे मेरे अपने,
हक़ीक़त में लेकिन कोई
दूर तक भी हमारा
न था, उभर
आएंगे
सभी
सत्य एक दिन, भुरभुरी ज़मीन
पर, सैलाब का पानी नहीं
होता है गहरा, निष्प्राण
आईना तलाशता है
इक अदद
चेहरा।
* *
- - शांतनु सान्याल
27 मई, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसत्य एक दिन, भुरभुरी ज़मीन
जवाब देंहटाएंपर, सैलाब का पानी नहीं
होता है गहरा, निष्प्राण
आईना तलाशता है
इक अदद
चेहरा।---बहुत ही अच्छी और गहरी कविता है आपकी।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआज के दर्द को सटीक अभिव्यक्ति देती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28 -5-21) को "शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा" ( चर्चा - 4079) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं