न जाने कितनी नदियां बहती हैं निःशब्द
वक्षस्थल के नीचे, सभी विष एक
दिन हो जाएंगे प्रभावहीन,
जीवन हो जाएगा
क्रमशः मृत्यु
से भय -
मुक्त, न जाने किस रूपकथा की बात -
करते हो, इस दुनिया में कोई भी
नहीं रहता, उम्र भर के लिए
अनुरक्त। नदी बही
जाती है शब्दहीन
उद्गम से ले
कर सुदूर
मुहाने
तक, पड़े रहते हैं किनारे पर अनगिनत
किस्से कहानियां, वट की जटाओं
से खेलते हैं जल भंवर, और
कभी गांव, घाट, मंदिर,
सेतु, सभी कुछ
कुहासे में
डूबे से
आते हैं नज़र, नदी को है बहना निरंतर,
एक अदृश्य रेखा है ये जिजीविषा,
बढ़ती जाती है महासिंधु की
ओर, किए जाती है मरु
तटबंधों को यूँ ही,
परितृप्त, सभी
विष एक
दिन हो
जाएंगे प्रभावहीन, जीवन हो जाएगा
क्रमशः मृत्यु से भय मुक्त।
* *
- - शांतनु सान्याल
11 मई, 2021
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बहुत सुंदर।🌻
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना है आपके द्वारा लिखी गई Hindi info
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