22 मई, 2021

धुंध के उस पार - -

उम्मीद के आलोक स्रोत कभी नहीं बुझते
दिन के उजाले में भी ये होते हैं मौजूद,
ये और बात है कि उन्हें हम देख
नहीं पाते, आकाश का सीना
है गहनतम, कहीं न
कहीं ज़रूर मिल
जाएंगे तुम
से हम
यूँ
ही आते जाते। कहने को डूबे हैं सितारे,
इस क्षितिज के अतिरिक्त भी हैं
कई अनजाने दिगंत की
सीमाएं, कहाँ जा कर
रुके इस जीवन
की नैया,
सब
कुछ है मुट्ठी बंद, बहते जाना है निरंतर
नियति के सहारे, कहने को डूबे हैं
सितारे, संभवतः धुंध के उस
पार है कोई जुगनुओं का
प्लावित द्वीप, और
नव सृजन के
सम्भाव्य
ढेर
सारे, कहने को डूबे हैं सितारे - - - - -

* *
- - शांतनु सान्याल

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (22-05-2021 ) को 'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
  2. नव सृजन के
    सम्भाव्य
    ढेर
    सारे, कहने को डूबे हैं सितारे - - - - -

    आशा का दीप जलता रहे इसी तरह

    जवाब देंहटाएं

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