20 मई, 2021

पुनर्यात्रा - -

जो खो गए समय स्रोत में उनका रंज
अपनी जगह, ज़िन्दगी को है फिर
खिलना गुलमोहर की तरह,
वो दिन जो अब हैं देह
विहीन आलिंगन,
उन्हें रख लें
बंद हृद
संदूक में, दर्द की सीमा नहीं होती - -
फिर भी कुछ तो छुपा रहता है
बिहान के कुहुक में, एक
अज्ञात सा मर्म जगा
जाता है जीवन
को, राह
चलते किसी अप्रत्याशित ठोकर की -
तरह, ज़िन्दगी को है फिर खिलना
गुलमोहर की तरह - -

* *
- - शांतनु सान्याल
  

6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. बहुत सुन्दर वाली रचना...👌👌👌

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  3. "जिंदगी को फिर खिलना है गुलमोहर की तरह" बहुत सुंदर उक्ति।7

    जवाब देंहटाएं

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