मृत नदी की तरह पड़ी रहती हैं अचल
स्मृतियां, सूख जाते हैं आर्तनाद,
रेत के टापुओं से झांकते
हैं पथरीले विषाद,
किनारों के
धूसर
पेड़ तलाशते हैं अपनी खोयी हुई सभी
परछाइयां, मृत नदी की तरह पड़ी
रहती हैं अचल स्मृतियां।
राख की तरह बिखरे
पड़े हैं दूर तक
दीर्घ जीने
के मधु
अभिलाष, आज मैं हूँ तुम्हारे दिल के
बेहद क़रीब, ज़रूरी नहीं उम्र भर
तुम मुझे रखो यूँ ही अपने
पास, कौन आए और
कौन लौट जाए,
बूढ़े बरगद
को कुछ
भी
फ़र्क़ नहीं पड़ता, विहंगों का कलरव -
यथारीति रहता है वितानों पर,
मुख़्तसर होती हैं ज़िन्दगी
की सभी तन्हाइयां,
मृत नदी की
तरह पड़ी
रहती
हैं अचल स्मृतियां, वक़्त भर जाएगा
लम्हा लम्हा, दर्द की अंधी सभी
गहराइयां - -
* *
- - शांतनु सान्याल
08 मई, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
मुख़्तसर होती हैं ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंकी सभी तन्हाइयां,
मृत नदी की
तरह पड़ी
रहती
हैं अचल स्मृतियां, वक़्त भर जाएगा
लम्हा लम्हा, दर्द की अंधी सभी
गहराइयां - -
निशब्द करता लाजवाब लेखन,👌👌🙏🙏
बेहद हृदयस्पर्शी सृजन
जवाब देंहटाएं