08 मई, 2021

अंध गहराई - -

मृत नदी की तरह पड़ी रहती हैं अचल
स्मृतियां, सूख जाते हैं आर्तनाद,
रेत के टापुओं से झांकते
हैं पथरीले विषाद,
किनारों के
धूसर
पेड़ तलाशते हैं अपनी खोयी हुई सभी
परछाइयां, मृत नदी की तरह पड़ी
रहती हैं अचल स्मृतियां।
राख की तरह बिखरे
पड़े हैं दूर तक
दीर्घ जीने
के मधु
अभिलाष, आज मैं हूँ तुम्हारे दिल के
बेहद क़रीब, ज़रूरी नहीं उम्र भर
तुम मुझे रखो यूँ ही अपने
पास, कौन आए और
कौन लौट जाए,
बूढ़े बरगद
को कुछ
भी
फ़र्क़ नहीं पड़ता, विहंगों का कलरव -
यथारीति रहता है वितानों पर,
मुख़्तसर होती हैं ज़िन्दगी
की सभी तन्हाइयां,
मृत नदी की
तरह पड़ी
रहती
हैं अचल स्मृतियां, वक़्त भर जाएगा
लम्हा लम्हा, दर्द की अंधी सभी
गहराइयां - -

* *
- - शांतनु सान्याल



2 टिप्‍पणियां:

  1. मुख़्तसर होती हैं ज़िन्दगी
    की सभी तन्हाइयां,
    मृत नदी की
    तरह पड़ी
    रहती
    हैं अचल स्मृतियां, वक़्त भर जाएगा
    लम्हा लम्हा, दर्द की अंधी सभी
    गहराइयां - -
    निशब्द करता लाजवाब लेखन,👌👌🙏🙏

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