07 मई, 2021

मुस्कुराना कभी न भूलें - -

बर्फ़ का दरिया है एक दिन पिघल
जाएगा, समय का सिक्का
उछलता रहता है
अपनी जगह
आज का
दिन
शायद न हो मेरे लिए कोई ख़ास,
मुझे यक़ीन है कि कल वो
ज़रूर कुछ ख़ास ख़बर
ले के आएगा, बर्फ़
का दरिया है
एक दिन
पिघल
जाएगा। विस्मित आरशी है तो
रहे अक्स मुस्कुराना कैसे
भूले, अतीत के फेंके
हुए बुनियादों पर,
फिर अनेक
मंज़िलें
उभर
आएंगी, लड़खड़ाता हुआ आज
का दिन साँझ गहराते ही
संभल जाएगा, बर्फ़
का दरिया है
एक दिन
पिघल
जाएगा, स्तूपाकार इस दर्द को
रहने दो यूँ ही भूमिगत,
जितना उत्खनन
करोगे उतना
ही देह -
प्राण
से बाहर दूर तक बिखर जाएगा,
समय का मरहम किसी एक
का नहीं है पेटेंट, ज़रा
इंतज़ार करो इस
दर्द से जीवन
एक रोज़
संभल
जाएगा, बर्फ़ का दरिया है एक
दिन पिघल जाएगा - -

* *
- - शांतनु सान्याल
 



 

14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०८-०५ -२०२१) को 'एक शाम अकेली-सी'(चर्चा अंक-४०५९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. शांतनु जी, बहुत ही गहरी छाप छोड़ती रचना है ये...क‍ि
    बर्फ़
    का दरिया है
    एक दिन
    पिघल
    जाएगा, स्तूपाकार इस दर्द को
    रहने दो यूँ ही भूमिगत,
    जितना उत्खनन
    करोगे उतना
    ही देह -
    प्राण
    से बाहर दूर तक बिखर जाएगा..बहुत सुंदर

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  3. वाकई एक न एक दिन सब ठीक हो जायेगा

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  4. ऐसा ही हो. यह वक़्त भी गुज़र जाएगा.
    जगजीत सिंह जी की गाई एक ग़ज़ल का शेर अनायास ही याद आ गया...

    मुस्कुराहट है हुस्न का ज़ेवर
    मुस्कुराना ना भूल जाया करो.

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  5. बिल्कुल यह दुख का बर्फ जल्द पिघलेगा और नदी का रूप लेकर फिर से कलकल हमारा जीवन होगा।
    बहुत ही बेहतरीन रचना।

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  6. 👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌

    जवाब देंहटाएं

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