07 सितंबर, 2021

बेरंग आकृति - -

मानचित्र अपनी जगह पड़ा हुआ है
यथारीति, नदी, पर्वत, पेड़ -
पौधे, कुहासे में तैरते
हुए तितलियों
के झुण्ड,
सब
कुछ हैं ख़ूबसूरत, फिर भी न जाने
क्या चाहता है तुम्हारे अंदर
का वन्य आदमी, तुम
देना नहीं चाहते
हो समरूप
जीने
की
स्वीकृति, मानचित्र अपनी जगह
पड़ा हुआ है यथारीति। न जाने
किस आकाश पार की ख़ुशी
चाहिए तुम्हें, नियति
के हथेलियों में
हैं बंद एक
बूंद भर
की
ज़िन्दगी, इस पल में है शामिल
कई जन्मों की नेमत, जो
हाथ से छूट जाए तो
न मिल पाए ये
दोबारा कभी,
सब कुछ
है शून्य
सा
इस जगत में, अगर दिल में न हो
तुम्हारे मानवीय प्रीति, मानचित्र
अपनी जगह पड़ा हुआ है
यथारीति। न जाने
किस धर्म कर्म
की वो बात
करते
हैं
अपने उच्च अभिलाष की ख़ातिर
मासूमों का नर संहार करते हैं,
चाहे क्यूँ न जीत ले हम
सारी पृथ्वी, ग़र न
जीत पाए दिल
की नाज़ुक
ज़मीं
तो
है दुनिया केवल बेरंग बेजान एक
अभिशप्त आकृति, मानचित्र
अपनी जगह पड़ा हुआ है
यथारीति।
* *
- - शांतनु सान्याल

 

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 8 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-09-2021) को चर्चा मंच      "भौंहें वक्र-कमान न कर"     (चर्चा अंक-4181)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  3. मानचित्र अपनी जगह पड़ा हुआ है
    यथारीति, नदी, पर्वत, पेड़ -
    पौधे, कुहासे में तैरते
    हुए तितलियों
    के झुण्ड,
    सब
    कुछ हैं ख़ूबसूरत, फिर भी न जाने
    क्या चाहता है तुम्हारे अंदर
    का वन्य आदमी, तुम
    देना नहीं चाहते
    हो समरूप.. मानव मन की तृष्णा का बड़ा ही गहन चित्रण करती सुंदर रचना ।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. चाहे क्यूँ न जीत ले हम
    सारी पृथ्वी, ग़र न
    जीत पाए दिल
    की नाज़ुक
    ज़मीं
    तो
    है दुनिया केवल बेरंग बेजान एक
    अभिशप्त आकृति,

    बहुत सुंदर रचना...

    जवाब देंहटाएं

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