13 सितंबर, 2021

नारीत्व का मूल्य - -

एक अजीब सा भयाक्रांत शैशव हम
छोड़ जाते हैं पीपल के नीचे, न
जाने कितने गल्प और
कहानियों को बाँट
जाते हैं लिंग
भेद के
मध्य,
लड़कियों को प्रेत की कथा, और -
लड़कों को सुनाते हैं सिंह
शावक से खेलने की
महा शौर्य गाथा,
असल में
जन्म
से ही हम दिखाते हैं लड़कियों को
चौखट पर खड़ा कुपित दुर्वासा,
बस, उसी दिन से शुरू हो
जाती है पंख कतरने
की आदिम प्रथा,
फिर भी, ये
कल्प -
बेल की तरह बढ़ती जाती हैं नए -
नए दिगंत की ओर, रचती
हैं पृथ्वी पर अभिनव
रूपरेखा, उनके
गर्भगृह से
जन्म
लेते हैं हर युग में बारम्बार महान
विश्व पुरोधा - -
* *
- - शांतनु सान्याल  
 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-9-21) को "हिन्द की शान है हिन्दी हिंदी"(4187) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा






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  2. जन्म
    से ही हम दिखाते हैं लड़कियों को
    चौखट पर खड़ा कुपित दुर्वासा,
    बस, उसी दिन से शुरू हो
    जाती है पंख कतरने
    की आदिम प्रथा
    शांतनु भाई, लैंगिंग भेदभाव की यही तो खास वजह है। बहु5 सुंदर अभिव्यक्ति।

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  3. बस, उसी दिन से शुरू हो
    जाती है पंख कतरने
    की आदिम प्रथा--बहुत ही गहनतम शब्दों वाली रचना।

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  4. 'बस, उसी दिन से शुरू हो
    जाती है पंख कतरने
    की आदिम प्रथा'... बहुत सही कहा आपने! आपकी कविताएँ मन मोह लेती है बन्धुवर😍!

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