कांच के गुम्बदों में कहीं उतरा होगा
किसी नील चंद्र का प्रतिबिम्ब,
हर किसी को कहाँ मिलता
है सपनों का ताजमहल,
अदृश्य स्तम्भों
के ऊपर है
सितारों
का
शामियाना, हमारी इस मिल्कियत
में आलोक स्रोतों की है अंतहीन
हलचल, हर किसी को कहाँ
मिलता है सपनों का
ताजमहल। तुम
हो लुब्धक
तारक,
खोजते हो हर एक मोड़ पर बिल्लौरी
खदान ! हम तलाशते हैं सूखी
मिट्टी में विलुप्त वृष्टि के
निशान, रुग्ण सरोवर
के वक्ष स्थल पर
हर हाल में
लेकिन
खिलता है शतदल, हर किसी को कहाँ
मिलता है सपनों का ताजमहल।
* *
- - शांतनु सान्याल
18 सितंबर, 2021
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 19 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-9-21) को "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हर किसी को कहाँ
जवाब देंहटाएंमिलता है सपनों का ताजमहल।
–अब तक तो एक ही ताजमहल बना है। उसका नकल भी हुआ है मकबरा तो...
लेखन सज्जा बहुत सुन्दर है
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसर आपकी हर एक कविता बहुत ही बेहतरीन होती है!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना सर । बहुत बधाइयाँ ।
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