अंधकार में सो जाते हैं जब सभी स्मृति
अरण्य, हम तलाशते हैं झींगुरों के
मध्य, जुगनुओं की बस्तियां,
तमाम रात शंखमय
अस्तित्व बहता
चला जाता
है तट
की
ओर, कौन किस की ख़बर रखता है यहाँ,
डूब जाती हैं मझधार में, न जाने
कितनी ही अनजान कश्तियां,
हम तलाशते हैं झींगुरों
के मध्य, जुगनुओं
की बस्तियां।
बुनते हैं
हम
अपने अदृश्य खोल के अंदर असंख्य -
छद्म परिधान, अंदर में दूर तक
होता है खोखलापन का
साम्राज्य, लेकिन
हम दिखाते
हैं बाहर
लोगों
को, अभिजात्य की मिथ्या आन - बान,
समय सब कुछ धीरे धीरे निगल
जाता है, ढह जाते हैं एक दिन
शानदार महल हो या
रंगीन हवेलियां,
इतिहास के
पृष्ठों में
खो
जाते हैं तथाकथित महान हस्तियां, हम
तलाशते हैं झींगुरों के मध्य,
जुगनुओं की
बस्तियां।
* *
- - शांतनु सान्याल
25 सितंबर, 2021
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समय सब कुछ धीरे धीरे निगल
जवाब देंहटाएंजाता है, ढह जाते हैं एक दिन
शानदार महल हो या
रंगीन हवेलियां,
इतिहास के
पृष्ठों में
खो
जाते हैं
सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंसमय सब कुछ धीरे धीरे निगल
जवाब देंहटाएंजाता है, ढह जाते हैं एक दिन
शानदार महल हो या
रंगीन हवेलियां,
इतिहास के
पृष्ठों में---- गहन लेखन।
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
जवाब देंहटाएं