मुहाने पर जा कर नदी भूल जाती है
समस्त अहंकार, सुदूर पीछे
छूट जाते हैं, झाऊ वन,
धसते हुए नाज़ुक
किनारे, घाट
के अध
डूबी
सीढ़ियां, सांध्य आरती, देवालय के
शीर्ष से उठता हुआ रास पूर्णिमा
का चाँद, विलीन होती हुई
गौ कंठी रुनझुन, सिर्फ़
सामने होता है एक
अंतहीन नील
पारावार,
मुहाने
पर
जा कर नदी भूल जाती है समस्त
अहंकार। सागरीय गर्भपथ से
हो कर जीवन करता है
अनवरत गहन
अंध यात्रा,
असंख्य
युगों
की तृष्णा लिए प्राण खोजता है उस
अतल में मुक्ति दायिनी मोती,
निमज्जित प्रवाल द्वीपों
में कहीं कदाचित हो
लुप्तप्राय विरल
प्रणय की
ज्योति,
फिर
भी कहाँ बुझ पाता है अभ्यंतरीण -
हाहाकार, मुहाने पर जा कर
नदी भूल जाती है समस्त
अहंकार।
* *
- - शांतनु सान्याल
20 सितंबर, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 21 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह! लाज़वाब!! हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन एवं भावपूर्ण सृजन सर।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर।
सर जी वाह बहुत ही अच्छी लाइने लिखी है आपने। धन्यवाद। Zee Talwara
जवाब देंहटाएं