20 सितंबर, 2021

अंतर्नाद - -

मुहाने पर जा कर नदी भूल जाती है
समस्त अहंकार, सुदूर पीछे
छूट जाते हैं, झाऊ वन,
धसते हुए नाज़ुक
किनारे, घाट
के अध
डूबी
सीढ़ियां, सांध्य आरती, देवालय के
शीर्ष से उठता हुआ रास पूर्णिमा
का चाँद, विलीन होती हुई
गौ कंठी रुनझुन, सिर्फ़
सामने होता है एक
अंतहीन नील
पारावार,
मुहाने
पर
जा कर नदी भूल जाती है समस्त
अहंकार। सागरीय गर्भपथ से
हो कर जीवन करता है
अनवरत गहन
अंध यात्रा,
असंख्य
युगों
की तृष्णा लिए प्राण खोजता है उस
अतल में मुक्ति दायिनी मोती,
निमज्जित प्रवाल द्वीपों
में कहीं कदाचित हो
लुप्तप्राय विरल
प्रणय की
ज्योति,
फिर
भी कहाँ बुझ पाता है अभ्यंतरीण -
हाहाकार, मुहाने पर जा कर
नदी भूल जाती है समस्त
अहंकार।
* *
- - शांतनु सान्याल
 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 21 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बेहतरीन एवं भावपूर्ण सृजन सर।

    प्रणाम
    सादर।

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  3. सर जी वाह बहुत ही अच्छी लाइने लिखी है आपने। धन्यवाद।  Zee Talwara

    जवाब देंहटाएं

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