02 सितंबर, 2021

धुएं की ज़द में - -

चोर दरवाज़ा कहीं न था, हर तरफ गुंथी
हुई थी जालीदार झालर, तुम्हारे
सामने मेरा आत्म समर्पण
के अलावा कोई उपाय
न था, वो कोई
प्रेम था या
तृषाग्नि
अब
सोचने से क्या फ़ायदा, धुएं की ज़द में
थी ये धरती, धुंधला सा आसमान,
महाशून्य में थे देह- प्राण, वहां
कोई भी हमारे सिवाय
न था, तुम्हारे
सामने
मेरा
आत्म समर्पण के अलावा कोई उपाय
न था। वो महा यज्ञ था, या कोई
सुप्त अनल उत्सव, हलकी
सी छुअन से जो हो गए
सृष्टि पूर्व के तपन,
अब अवशिष्ट
भष्म में
कुछ
भी नहीं पद चिन्ह, जो गुज़र गए नंगे
पांव, मुश्किल है उनका अनुसरण,
जीवन की त्रिकोणमिति में
हम तलाशते हैं एक
अदृश्य सुख का
अणु बिंदु,
जो
पाप पुण्य के घेरे से हो मुक्त, लेकिन
आसान नहीं है ज्वलंत अग्निपथ
का अनुकरण, जो गुज़र गए
नंगे पांव, मुश्किल है
उनका अनुसरण।
* *
- - शांतनु सान्याल
 

   

 
 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०३-०९-२०२१) को
    'खेत मेरे! लहलहाना धान से भरपूर तुम'(चर्चा अंक- ४१७७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. जीवन की त्रिकोणमिति में
    हम तलाशते हैं एक
    अदृश्य सुख का
    अणु बिंदु---बहुत अच्छी रचना है शांतनु जी।

    जवाब देंहटाएं

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