सुदूर तलहटी में ऊँघता सा है पुरातन
शहर, धीरे धीरे दिमाग़ से उतर
रहा है अफ़ीम का असर,
बिखरे हुए हैं, हर
तरफ राजसी
उतरन,
लोग
देख रहे हैं मुद्दतों से खुशहाल दिनों का
सपन, कौन किसे समझाए, हर
एक मोड़ पर है नशेड़ियों की
जमात, होशवाले बस
भटक रहे हैं दर
ब दर, धीरे
धीरे
दिमाग़ से उतर रहा है अफ़ीम का असर।
मुश्किल है विकल्प की खोज यहाँ,
लेकिन नामुमकिन नहीं, बस
दिलों में चाहिए कुछ कर
गुज़रने की आस,
वक़्त नहीं
लगता
उतारने में, सम्राट के मूल्यवान पोशाक,
दिलों में कहाँ सोता है कुरुक्षेत्र आठ
प्रहर, धीरे धीरे दिमाग़ से उतर
रहा है अफ़ीम का
असर।
* *
- - शांतनु सान्याल
23 सितंबर, 2021
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