09 सितंबर, 2025

देहांतरण - -

अदृष्ट प्रदीप, मातृ सम प्रज्वलित तब

अंतःकरण, सभी दिशाएं जब हों
अंधकारमय, मकड़ जाल में
समय चक्र, जीवन
प्रवाह तब मांगे
भवसिंधु का
गहन शरण,
अदृष्ट
प्रदीप, मातृ सम तब प्रज्वलित अंतः
करण । पाषाण प्रतिमा बन जाए
ईश जब हम भिक्षु सम फैलाएं
हाथ, मंदिर के बाहर पांव
रखते ही बढ़े अनेकों
हाथ तब तुम हो
ईश्वर का ही
एक अन्य
रूप,
ये और बात है कि हम में कितना अंश
है ईश्वरीय अवतरण, अदृष्ट प्रदीप,
मातृ सम प्रज्वलित तब
अंतःकरण ।
- - शांतनु सान्याल


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past