अनुबंध था जल शब्द की तरह अथाह गहराई में विलीन हो जाना, सजल
अंधकार को देह में लपेटे गहन
प्रणय के लिए अंध मीन हो
जाना, चाहतों के तरंग
थे कल्पना के परे,
संग रहने की
अवधि
रही
सीमित, सोचने समझने में ही समय गुज़र
गया, मुश्किल था किसी एक पर सब
कुछ त्याग कर तल्लीन हो जाना,
अनुबंध था जल शब्द की
तरह अथाह गहराई
में विलीन हो
जाना ।
उम्र
अपना असर छोड़ती है हर एक क़दम पर,
जीर्ण पत्तों का एक दिन धरा के अंक
में बिखरना है निश्चित, मौसमी
हवाओं के साथ ज़िन्दगी
खेलती है आँख -
मिचौली, जो
दरख़्त
आज
है फूलों से गुलज़ार, उसे भी एक दिन है
श्रृंगार विहीन हो जाना, अनुबंध था
जल शब्द की तरह अथाह
गहराई में विलीन
हो जाना ।
- - शांतनु सान्याल
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