26 सितंबर, 2025

दीर्घ जीवन - -

दो चकमक पत्थरों के मध्य अदृश्य रहती

है स्मृति स्फुलिंग, क्या हाथ आया
क्या फिसल गया के बीच दो
चेहरे ढूंढते रहते हैं कुछ
और अधिक जीने
की उम्मीद,
दरख़्त
से
टूट कर पत्ता एक सरसराहट छोड़ जाता
है दूर तक, पुरातन किताबी गंध में
कहीं हम ढूंढते हैं ताज़ा गुलाब,
वक़्त को चकमा दे कर
हम पाना चाहते हैं
काया कल्प
का सूत्र,
बन
जाते हैं क्रमशः हम अकल्पनीय आस्थाओं
के मुरीद, क्या हाथ आया क्या फिसल
गया के बीच दो चेहरे ढूंढते रहते
हैं कुछ और अधिक जीने
की उम्मीद । उठती
गिरती साँसों के
दरमियान
अदृश्य
चाह
का अंत कभी नहीं होता, हम छूना चाहते हैं
हृदय तल का सुख, डूबना चाहते हैं
अथाह गहराई में अनंत काल
के लिए, लेकिन चाहे
कोई कितना भी
क्यूं न हो
अमीर,
रूहानी प्रेम को वो नहीं कर सकेगा ख़रीद,
क्या हाथ आया क्या फिसल गया के
बीच दो चेहरे ढूंढते रहते हैं कुछ
और अधिक जीने की
उम्मीद ।
- - शांतनु सान्याल

1 टिप्पणी:

  1. वक्त कि यही फलसफा है ,पर एक सत्य है निस्वार्थ प्रेम रूप जो सदैव साथ रहता है , वक्त की सीमाओं को तोड़ता हुआ वक्त से भी परे ... चिरंतन ...शाश्वत...

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