इतिकथाओं के पृष्ठों से उतरता है समय देह में उकेरे हुए ज़ंजीरों के निशान,
पुकारते हैं अदृश्य महामानव
आग्नेय शब्दों में विस्मृत
स्वाधीनता के गान,
भग्न देवालयों
के गर्भ -
गृहों
में आज भी प्रज्वलित हैं शाश्वत मशाल,
सम्प्रति युग में भी हैं सक्रिय वही बर्बर
कौरवों के सन्तान, इतिकथाओं
के पृष्ठों से उतरता है समय
देह में उकेरे हुए ज़ंजीरों
के निशान । आओ
कि पुनः हम
संस्कृति
को
बचाने का लें संकल्प, सभी विषमताओं
को भूल कर रचें एक अद्वितीय वास -
स्थान, जहां हर एक व्यक्ति को
मिले न्यायोचित सन्मान,
देश बने पथ प्रदर्शक
विश्वगुरु महान,
पुकारते हैं
अदृश्य
महामानव आग्नेय शब्दों में विस्मृत
स्वाधीनता के गान ।।
- - शांतनु सान्याल
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