11 सितंबर, 2025

तयशुदा सौगात - -

जहां ख़तम हो जाए बातों का ज़ख़ीरा, वहीं

से होता है शुरू ख़ुद से गुफ़्तगू का
सिलसिला, ज़िन्दगी के
मुख़्तलिफ़ मोड़
पर मिलते
रहे न
जाने कितने चेहरे कुछ उजागर, कुछ धुंध
में छुपे हुए, अँधेरे उजाले का अंतहीन
खेल चलता रहता है यथावत,
किसे ख़बर कहाँ पर है
मौजूद पुरसुकून
का मरहला,
वहीं से
होता है शुरू ख़ुद से गुफ़्तगू का सिलसिला ।
अहाते की धूप रहती है मुख़्तसर वक़्त
के लिए, कुछ गुलाब की तक़दीर
में रहता है खुल कर मुस्काने
की वसीयत, कुछ झर
जाते हैं बिन खिले
ही शाम ढलने
से पहले,
अपने
अपने हिस्से का तयशुदा पुरस्कार मिला,
वहीं से होता है शुरू ख़ुद से
गुफ़्तगू का सिलसिला ।
- - शांतनु सान्याल

6 टिप्‍पणियां:

  1. स्वयं से संवाद... सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. भीतर की और मोड़ती सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. चुप्पी में अपने से संवाद चलता रहता है,,जाने कितना द्वंद्व चलता रहता है निरंतर हमारे मन में दिलो दिमाग में,, बहुत अच्छी रचना

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  4. वाह , बहुत सुन्दर । जब कोई नहीं बोलता तब अन्दर की खामोशी बोलती है ।

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