दृश्य से परे कुछ भी न था शून्य के सिवाय, नदी के उस पार था परछाइयों का
शहर, कुछ यादों के झुरमुट,
तथाकथित अस्थायी
पता ठिकाना,
कुछ रिक्त
पक्षियों
के
झूलते हुए नीड़, सूखे बबूल के दरख़्त, सब
कुछ था वहाँ एक दिन हृदय मूल्य के
सिवाय, दृश्य से परे कुछ भी न
था शून्य के सिवाय । एक
लम्बी सी यात्रा थी
शैशव से लेकर
वृद्धाश्रम
तक
जो सिमट कर रह गई निगाह के बियाबां में
आ कर, उस बिंदु में अब बरसात नहीं
होती, उसे ख़बर है इस ऊसर
भूमि की ओर कोई रास्ता
नहीं आता, फिर भला
किसी का इंतज़ार
कैसा, दूर तक
है धुंध ही
धुंध,
इस मोड़ के आगे कुछ भी नहीं सघन अरण्य
के सिवाय, दृश्य से परे कुछ भी न था
शून्य के सिवाय ।
- - शांतनु सान्याल
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