04 सितंबर, 2025

उस मोड़ पर कहीं - -

नदी जिस हँसली मोड़ पर छोड़ जाती है

रेत का ढलान, उसी बंजर जगह पर
बिखरे पड़े रहते हैं निःसंगता के
शून्य स्थान, सुख दुःख के
प्रश्नोत्तरी में ज़िन्दगी
ढूंढती है संधि
काल, हर
एक
प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाता दर्पण का
वेताल, समय स्रोत सदैव रहता
है चलायमान, बंजर जगह
पर बिखरे पड़े रहते हैं
निःसंगता के शून्य
स्थान । सात
जनमों का
संग नहीं
सहज
इसी
जगह पर एक दिन एकाकी है सुलगना,
इसी स्थान पर रह जाएंगे कुछ एक
पदचिन्हों के अभिलेख, कुछ
मिट जाएंगे सदा के लिए,
चलता रहेगा क्रमशः
डूबना और
उभरना,
कुछ
आवाज़ प्रतिध्वनित हो लौट आएंगे कुछ
हो जाएंगे शब्दहीन बियाबान, बंजर
जगह पर बिखरे पड़े रहते हैं
निःसंगता के शून्य
स्थान ।
- - शांतनु सान्याल

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