27 सितंबर, 2025

मौजूदगी का सबूत - -

 

सभी ने देखा है मुझे सरेराह

लुटते हुए ताहम हाकिम
को अपनी मौजूदगी
दिखला न सका,
कभी मुझ
को भी
था अपनी अक्स पर नाज़, उस
लापता चेहरे से कभी तुम्हें
मिला न सका, इश्तेहार
के लफ़्ज़ों तक
सिमटी हुई है
ज़िन्दगी,
बेजान
बस्ती को अब तक कोई जिला न
सका, अभी तक हैं महरूम
रौशनी से कई गली
कूचे, बूढ़ी रात
को मुनासिब
हक़ कोई
दिला न
सका,
चाँद सितारों की बात करते हैं ये
मीर ए कारवां, ज़मीं पे एक
उदास चेहरे को जो
खिला न
सका ।
- - शांतनु सान्याल




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