ख़्वाब ही सही, रहने दे मेरी आँखों में उसकी
चाहत की नमी, कोहरा ही सही, छाया
रहे वादियों में पुरअसर, उसकी
जुस्तजू में रूह चाहती
है भटकना, कई
जन्मों तक,
कभी गुलशन, कभी सहरा, इक तलाश - -
मुसलसल, सुलगते दिन या पुरनम
रातें, इक उसकी ख़्वाहिश बाक़ी
सब रस्मी बातें, दरमियाँ
ज़मीं ओ फ़लक !
इक प्यास
अनबुझ, दिल की गहराइयों में सिर्फ़ रंग
उसका, तहे ज़मीर महक उसकी !
* *
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