अंजुमन ए नजूम में था रात भर, इक मुबाहसा
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बेइन्तहा, के ज़मीं पे नज़र आता है कोई
पैकर कहकशां ! मोज़ूअ बहस
रुक सी जाती है अक्सर
आ कर उनकी
आँखों में
बारहा, हसूद दिल चाहता है मुक्कमल फ़तह - -
खुला आसमां ! इक संदली ख़ुशबू सा है,
तारी तहे ज़मीर, ज़िन्दगी फिर
चाहती है तेरे इश्क़ में, बूंद
बूंद कामिल शबनम
की मानिंद,
फूलों पे
बग़ैर शर्त अन्दर तक लबरेज़ जज़्ब हो जाना !
* *
- शांतनु सान्याल
अंजुमन ए नजूम - सितारों का समूह
मुबाहसा - बहस
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