11 अप्रैल, 2013

रहने भी दें - -

कुछ भी न था दरमियाँ हमारे, ये सच है 
या हिजाब रस्मी, रहने भी दें सीने 
में दफ़न ये ख़ूबसूरत राज़ 
इब्दी ! कुछ ख़्वाब जो 
न टूटे उम्र भर, 
रहने भी 
दे दिल के कोने में कहीं वो इबादत - - 
मख़फ़ी, कि लग न जाए कहीं 
इलज़ाम ग़ैर मोमिन का 
उम्र भर के लिए 
मुझ पर !
* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
इब्दी - गुप्त 
मख़फ़ी - छुपा हुआ 
मोमिन - विश्वास करने वाले 
ART BY MELTEM KILIC

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    नवरात्रों और नवसम्वतसर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ...!

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