कुछ भी न था दरमियाँ हमारे, ये सच है
या हिजाब रस्मी, रहने भी दें सीने
में दफ़न ये ख़ूबसूरत राज़
इब्दी ! कुछ ख़्वाब जो
न टूटे उम्र भर,
रहने भी
दे दिल के कोने में कहीं वो इबादत - -
मख़फ़ी, कि लग न जाए कहीं
इलज़ाम ग़ैर मोमिन का
उम्र भर के लिए
मुझ पर !
* *
इब्दी - गुप्त
मख़फ़ी - छुपा हुआ
मोमिन - विश्वास करने वाले
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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नवरात्रों और नवसम्वतसर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ...!