04 अप्रैल, 2013

सुबह दुआओं वाली !

इक सन्नाटा सा है दूर तलक, अक्स चाहे
निजात, लेकिन आईना गुमसुम !
इक मुसाफ़िर पोशीदा और
अंधेरों से उभरती
आवाज़ !
तेरी मुहोब्बत बेशक ख़याल से परे, फिर
भी जाने क्यूँ, बाँध न पाए मेरे
मज़तरब जज़्बात, कोई
रूह बदवी, दे जाए
मुसलसल
दस्तक आधी रात, कि बसती  हैं गली - -
नुक्कड़ में रात ढले ख़ामोश
कराहों की बस्तियां
लिए निगाहों
में एक
शबनमी ख़्वाब, हर चेहरे पे जहाँ तैरतीं
हों इक किरण इत्मीनान ! ज़िन्दगी
खोजती है बड़ी शिद्दत से, वो
सुबह दुआओं वाली !
जहाँ तेरे सिवा
भी और,
मुस्कुराते हों लिए इक ख़ूबसूरत अन्दाज़,
* *
- शांतनु सान्याल
रूह बदवी - आदिम आत्मा



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