05 अप्रैल, 2013

अंतहीन जुस्तजू - -

सब कुछ बिखरा सा रहा दरिया के दोनों 
जानिब, वक़्त था या कोई बहता 
हुआ लहरों का आसमां !
मुख़्तसर दामन 
न समेट 
पाया 
किसी की मुहोब्बत बेशुमार, ज़िन्दगी -
के उस मोड़ पर था मैं बहोत ही 
अकेला, न वो सुन पाए 
मेरी गूंजती सदा, न 
मैं रुक पाया 
उनके 
इंतज़ार में कुछ और ज़रा, जज़्बात रहे 
दूर तक बिखरे हुए, हद ए नज़र !
किसे ख़बर कि वो आज 
भी तलाशते हैं मेरा 
पता, गलियों 
गलियों, 
मंज़िल दर मंज़िल, इक ला मतनाही - 
जुस्तजू - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 

ला मतनाही - अंतहीन 


http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by edvaldas ivanauskas

3 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे देश के लोग दो प्रकार के वर्ग में विभक्त है, एक भाव वर्ग एक अभाव वर्ग ।
    भाव वर्ग के लोगों का घर, गली, चौराहा, नगर प्रदेश आधार भुत सुविधाओं से
    सम्पन्न है जबकि अभाव वर्ग के लोग सुविधा हीन हैं ।
    भाव वर्ग एवं अभाव वर्ग में एक समानता है और एक भिन्नता है
    समानता यह है कि दोनों ने अपने जीवन में कभी रेल गाडी नहीं देखी है या देखी है
    किन्तु छूकर नहीं देखी है.....या छूकर तो देखी है किन्तु कभी बैठ कर नहीं देखि है
    .....या बैठ कर तो देखी है किन्तु एक या दो बार.....रेलगाड़ी??????.....अरे वही
    जिसमे बहुत सारे डिब्बे होते हैं, जो चलती है तो सिटी बजाती है प्राय: लाल रंग में
    पाई जाती है, आगे एक ठो ईंजन टाइप का होता है.....कभी-कभी पीछे भी होता है ।
    असमानता ये है कि अभाव वर्ग ने कभी हवाई जहाज नहीं देखी है.....
    या देखी है तो कभी छूकर नहीं देखी है.....या छूकर देखी है तो कभी बैठ कर देखी है
    .....या बैठ कर भी देखी है तो एक या दो बार....जबकि भाव वर्ग को देख देख के हवाई
    जहाज अंधी हो गई है ।
    हमारे परिवार में एक भौजी है जब वो हमारे घर ब्याह कर आई थीं
    तो उन्होंने कभी रेलगाड़ी नहीं देखी थी.....रेलगाड़ी??????.....वही वही.....फिर हमने
    उनको रेलगाड़ी दिखाई पूछा "कैसी है".....तो एक उंगली से छू के बोली....."लोहे की है"
    .....रेलगाड़ी देखकर वो इतनी रोमाचित हुई कि उनके रोमाच पर हमारा तो निबन्ध
    लिखने का मन करने लगा.....सोचा किन्तु शीर्षक क्या लिखेगे.....हाँ....."मेरा पहला
    रेल दर्शन".....नो..नो.." मेरी पहली रेल का पहला दर्शन".....नो..नो.. "मेरे पहले दर्शन
    की रेल".....नो..नो..: मेरी रेल के पहले दर्शन".....

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  2. ये रुदादे- रुद और ये शहनाई का शोर..,
    मेरी तलाश में है तेरी तन्हाई का शोर.....

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